नितिन राजीव सिन्हा
देश,जब ग़द्दारों की पहचान सार्वजनिक मंचों से शुरू कर देता है तब राजनीति की दिशा व दशा बदल जाती है गंगा उल्टी बहती है यद्यपि कुछ साल पहले तक हम प्रतीक पुरूषों के प्रति निष्ठा के भाव रखते थे श्रीराम की उपासना करते थे गांधी,नेहरू,सुभाष के आज़ादी के आंदोलनों में योगदान पर चर्चा करते थे हज़ारों क्रांति के पथिक थे जिन पर हम श्रद्धा रखते थे पर,क्रांति की अलख जला रखने वाले हाथ गुरू गोलवलकर या श्यामा प्रसाद के भी रहे हों यह जानने की जिज्ञासा हमारी कभी न रही,माफ़ी माँगकर अंग्रेज़ों की कृपा पाने वाले नाम वीर सावरकर अथवा अटल जी के रहे हों यह गौण विषय था हमनें सावरकर के नाम पर इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में डाक टिकट जारी होते हुये देखा है अटल जी को देश का पीएम बनते हुये देखा है ..,
“सम्मान की समानता कांग्रेस के पचास से अधिक सालों की सत्ता काल की विशेषता रही है जो मोदी काल के इन सात वर्षों में गौण हुई है..,”
डॉ.अंबेडकर ने सभी धर्मों की महिलाओं के लिये परदे से मुक्ति की बात कही थी शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और शिक्षित करना समाज और सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी इसलिये तालीम के ऊपर लड़कियों को हिजाब चुनने के लिये प्रेरित करना प्रतिगामी है पर,यक्ष प्रश्न यह है कि चुनावों के दरमियाँ ऐसी अनहोनियाँ हो जाना के,पुलवामा में सीआरपीएफ़ जवानों की जानें जाया हो जाना,अभिनंदन का पाकिस्तान फ़ौज के हाथ लग जाना फिर मीडिया को बहस का मुद्दा मिल जाना और अब हिजाब पर बहस छिड़ जाना पर,चुनाव बीतते ही मोदी,मोदी,मोदी के नारों से देश के संसद का गूँज जाना उन मसलों के अंकुरण पर मठा डाल देता है,जो कोरोना काल की सरकार की विफलताओं पर पीएम नरेंद्र मोदी को टीवी पर दर्शकों के सामने फूट फूट कर रोने को मजबूर कर देता है...,
राष्ट्र का यह गर्त काल माना जाता है जब उन्माद मुद्दा बन जाता है यह मानसिक आतंकवाद का प्रस्फुटन है के,धर्मों के अंतर पर राष्ट्र विषपान करे,बेरोज़गारी,महँगाई के खिलाफ मतदान करने का साहस न करे यह काल मोदी का स्वर्ण काल है पर,आवाम इस दौर में अपनी दशा का मूल्याँकन करे तो बेहतर होगा कि संविधान की मर्यादायें आखिर क्यों तार तार हो रही हैं..,
जनता के लिये मीर हसन के लिखे हुये शेर सबक़ बन जायेंगे के,
सदा ऐश दौरां
दिखाता नहीं
गया वक़्त फिर
वापस आता नहीं..,