नितिन राजीव सिन्हा
भूपेश बघेल जब से छत्तीसगढ़ की कमान सम्हाल रहे हैं तब से संस्कृति और सभ्यता तथा सामाजिक समरस्ता के स्तर पर शासन के प्रयास सराहनीय बन पड़े हैं..,
आज भूपेश,गुरु जी बन भिलाई के वैशाली नगर शाला में बच्चों को भौरा नामक पाठ पढ़ायेंगे और भौरा चलन की पौराणिक परंपरा का निर्वहन पाठयक्रम के तौर पर करेंगे..,
तकनीक के बढ़ते चलन के समय में छत्तीसगढ़ के खेल कहीं गुम हुए जा रहे हैं भौरा भी उनमें से एक है हरेली पर्व की छुट्टी और उस पर्व के उल्लास के दौर में मुख्य मंत्री ने अपने हथेली पर भौरा चलाकर जता दिया था कि आधुनिक दौर में छत्तीसगढ़ के मूल परिवेश सुरक्षित रखने के तमाम प्रयास उनकी सरकार की ओर से किये जायेंगे,इस सब से छत्तीसगढ़ की मौलिकता अपनी जगह स्थिर रह सकेगी “छत्तीसगढ़ के मूल्यों के प्रति भूपेश बघेल की संवेदना बताती है कि वे आने वाली पीढ़ियों को भी आधुनिकता के युग में पौराणिक परंपराओं के मामले में अपडेट रखने वाले हैं..,”
वैसे,किसी भी राज्य की परम्परायें यदि जीवंत रहें तो वह राज्य आगे बढ़ता है और विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाता है किंतु यह छत्तीसगढ़ का दुर्भाग्य था कि विगत १५ सालों में रमन सिंह की सरकार ने विश्वसनीय छत्तीसगढ़ का नारा दिया था इसके पीछे का अभिप्राय यहाँ के वन,खनिज,नदियों के पानी,कृषि भूमि और पहाड़ों को विकास की आड़ में बेच देने की रही थी इस लिये ही मार्केटिंग प्लान के तहत Credible Chhattisgarh branding की जाती रही जनता भोली थी पर वह लुटती रही और पूँजीवाद परवान चढ़ता रहा..,अब उम्मीदों को हौसले के पर लगे हैं “गढ़बो नवा छत्तीसगढ़”की भावनाओं के तहत यदि क्रिया हुई तो उम्मीदें बँधती हैं कि कुछ बेहतर हो सकेगा जिस पर लिखना होगा कि-
कुछ ख़्वाब थे
जो सच हुए
हैं,उम्मीदों को
हौसले का
आसरा हुआ है
चराग जले
हैं अंधेरे छटे
हैं बाग़ों के
भौंरे गीत
गुनगुनाये हैं..,