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तुष्टिकरण और जनकल्याण के बीच इंडिया आ गया सो,उसे दर बदर करने की तैयारी की जा रही है प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत बताता है कि डर,मोदी सत्ता के तन मन में घर बना चुका है के,वो डर गये हैं इंडिया तेरे नाम से,कभी क़समें खाते थे तुझ मर मिटनें की पर अब नाम ओ निशाँ तक मिटा देने पर तुले हुये हैं सवाल तो यही कि’क्या फासीवाद का चाल, चरित्र और चेहरा ऐसा ही होता है..?’

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नितिन राजीव सिन्हा 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंडला में जो कहा है वह मोदी सत्ता की मन:स्थिति का चित्रण करता है कि वह जनकल्याण की परिभाषा बदलने आये हैं के,तिजोरियाँ सेठों की भरी जा रही है मोदी सत्ता पर विपक्ष के आरोप हैं कि यह हम दो और हमारे दो की सरकार है खैर,अमित शाह ने जो कहा वह यह है कि इस बार कांग्रेस के तुष्टिकरण और भाजपा के जनकल्याण की मानसिकता के बीच मतदाताओं को चुनाव करना है वे कहते हैं कि देश के ख़ज़ाने पर गरीब आदिवासियों का अधिकार होगा या अल्पसंख्यकों का..,

           पर,इस बीच धनी गौतम अदानी जो वन क्षेत्रों में खनन का दायरा बढ़ाकर आदिवासियों के संसाधनों पर क़ब्ज़ा जमा रहे हैं का उल्लेख नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है..,

         जबकि देश का आदिवासी समाज चाहे वह झारखंड के गोड्डा में लग रहे पॉवर प्लांट का विस्थापित हो या छत्तीसगढ़ अथवा उड़ीसा का, तेलंगाना या अन्य कहीं का वे सब वनक्षेत्र में कारपोरेट सेक्टर की लूट के खिलाफ हैं वे आतंकित किये जा रहे हैं इसलिये आदिवासी की बात जब मोदी सत्ता के सरोकार करते हैं तो उसके निहितार्थ कारपोरेट सेक्टर का तुष्टिकरण होता है न कि जनकल्याण यह भयावह परिदृश्य की कल्पना को चरितार्थ करता हैं इसलिये सरकार की साख सदैव दांव पर लगी होती है २०१४ के बाद से देश में इसी तरह का वातावरण है..,

    अब,इंडिया पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं यह हिंदुस्तान की वैश्विक पहचान है इंडियन करेंसी पर रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया लिखा हुआ हैं चूँकि जी २० देशों के आमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ़ भारत लिख दिया गया है जबकि प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया लिखा जाना चाहिये था पर,एक राजनीतिक गठबंधन के संक्षिप्त नाम इंडिया हो जाने मात्र से घोर प्रतिक्रियावादी मोदी सत्ता ने इंडिया जो देश की वैश्विक पहचान है उसे ही ताक पर रख देने का दु:साहस कर दिया है..,

देश की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करने की छूट किसी निरंकुश सत्ता को महज़ बहुमत के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिये चूँकि विगत दस सालों में पत्रकार विमर्श का वह स्वरूप खंडित हो चुका है जो इंडिया की नेशनल इंटाग्रीटी पर सतत मंथन करता था पर,अब पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्माई खेल तमाशों पर चर्चा होती है वहीं मीडिया की हेडलाइन्स बनती हैं इसलिये सत्ता मद में चूर मदमस्त लोगों को आईना दिखाया नहीं जा रहा है ऐसे में किसी दिन देश के नाम का हर पाँचवें साल नवीनीकरण करवाये जाने का कोई नियम न बना दिया जाये ऐसी आशंका प्रबुद्ध वर्ग के मन में बैठ चुकी है ..,

प्रधान सेवक अब इंडिया बोलना नहीं चाहते हैं इसलिये इंडिया,इंडिया नहीं रहेगा यह शाही अंदाज स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं देखा गया है पर,अब तुग़लक़ टू का दौर है जिसमें सब कुछ संभव है देश का नाम इंडिया,का नाम बदले जाने के सनक के परवान चढ़ने की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता है..,

बजा लुधियानवी के शेर हैं कि,-

फिर फजा धुंधला 

गई आसार हैं 

तूफ़ान के,काँपते 

हैं फूल कमरे में

मिरे गुलदान के..,

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