नितिन राजीव सिन्हा
पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में हुई वह यात्रा जम्मू तक गई वहाँ से बेहद कड़ी सुरक्षा में चंद लम्हों के लिये मुरली मनोहर जोशी श्रीनगर लाये गये वे लाल चौक पर संगीनों के साये में तिरंगा फहराये और तुरंत ही वापस जम्मू पहुँचा दिये गये,हो सकता है कि नरेंद्र मोदी उनके साथ वहाँ तक पहुँचे हों पर,ध्वजारोहण उन्होंने किया हो यह किसी के ज़ेहन में नहीं है खैर,सरकारी रेकार्ड में यह सब होगा तो देर सबेर युवा पीढ़ी इस बात से वाक़िफ़ हो जायेगी..,
पेंशनगुजार जिनकी पितृसत्ता रही हो वे ब्रिटिशर के खिलाफ कभी खड़े नहीं हुए थे आज़ादी के तक़रीबन ५२ सालों के बाद तक तिरंगा ध्वज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय पर नहीं फहराया जा सका था सन् २००१ में जब दो युवकों ने वहाँ तिरंगा फहराने की हिमाक़त की तब संघ नेतृत्व ने पुलिस में उनके ख़िलाफ़ तिरंगा फहराने के कथित हिमाक़त की शिकायत कर दी थी..,
भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास की बातें करें तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व हिंदू महासभा तथा मुस्लिम लीग अविभाज्य भारत के चल रहे स्वतंत्रता संग्राम की मूल अवधारणा के खिलाफ थे वे अंग्रेजों भारत छोड़ो के भी विरुद्ध थे जब अथक संघर्ष के बाद कांग्रेस अंग्रेजों के खिलाफ वृहद् जनसमर्थन प्राप्त करने में सफल हो गई १९४२ का अंग्रेजों भारत छोड़ो यह नारा मूर्त रूप लेने लगा तब उक्त तीनों दक्षिण पंथियों का विघ्न संतोष उभरकर सामने आया उबलते दूध में नींबू निचोड़ दिया गया भयंकर खून ख़राबा हुआ और विभाजन की विभीषिका इस देश ने झेला..,
गांधी का विकास ज़्यादा असाधारण था क्योंकि उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ब्रिटिश साम्राज्य में विश्वास रखने वाले के रूप में की थी लेकिन फिर न केवल भारतीय उप महाद्वीप में,बल्कि एशिया और अफ़्रीका में भी वह इसके सबसे बड़े और मज़बूत विरोधी के रूप में उभरे वह उपनिवेशवाद को उसकी तमाम क्रूरताओं और अमानवीयता के साथ समाप्त करने के लिये प्रेरक बने,जिसे हेराल्ड मैकमिलन ने १९६० में प्रिटोरिया में अपने ऐतिहासिक संबोधन में ‘परिवर्तन की बयार’कहा था..,
महात्मा गांधी के बारे में हेराल्ड मैकमिलन ने प्रिटोरिया में जो कहा था वह इतिहास में दर्ज है पर,तिरंगे को चिमटे से भी छूने से मना करने वाली आरएसएस ने इसे अशुभ कहा था वे तीन रंगों के मिलन को विभीषिका मानते रहे हैं गुरू गोलवलकर ने लिखा था कि भगवा झंडा ही हमारी महान संस्कृति को संपूर्णता में व्यक्त करता है वह ईश्वर का रूप है और हमें विश्वास है कि अंत में पूरा राष्ट्र भगवा ध्वज के आगे सिर नवाज़ेगा..,
राष्ट्र ध्वज निर्धारण प्रक्रिया में जो सदस्य शामिल थे उन सबने पं.नेहरू के प्रस्ताव का समर्थन किया था और तिरंगा ध्वज को राष्ट्र ध्वज के तौर पर स्वीकार किया था एचबी कामथ,सेठ गोविंददास,सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन,तजमुल हुसैन,डॉ.एचसी मुखर्जी,आपके सिधवा,जयपाल सिंह,ज्ञानी गुरूमुख सिंह,मुसाफ़िर,जयनारायण व्यास,सरौजनी नायडू,फ़्रैंक रेजीनॉल्ड,,एंथनी और मणि पिल्ले ध्वज निर्धारण समिति के सदस्य थे..,
मौजूदा दौर गुरू गोलवलकर के अनुयायीयों के लिये विचलन का है वे,भगवा ध्वज से पीछा छुड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं पर,तिरंगा जिसे पंडित जवाहर लाल नेहरू ने राष्ट्रीय ध्वज बनाने का प्रस्ताव दिया था उस प्रस्ताव का तब आरएसएस ने खुला विरोध किया था के समक्ष मोदी सत्ता नेहरू के बनाये हुए पथ पर बढ चली हैं कांग्रेस में भारतीय जनता पार्टी का सांस्कृतिक विलय होता हुआ दिखाई पड़ रहा है यह भारत की राजनीति का टर्निंग प्वाइंट है..,
थोथा चना बाजे घणा वाली दशा मोदी सत्ता की बन पड़ी है २०१४ का चुनाव राम मंदिर और कथित गुजरात मॉडल पर नरेंद्र मोदी ने जीता था,२०१९ पुलवामा और अभिनंदन के नाटकीय घटनाक्रम पर मीडिया के सहारे लड़ा और जीता गया वहीं २०२३ के लिये भगवा राजनीति प्रासंगिक नहीं रह गई है सो,तिरंगा और मेरी माटी मेरा देश इस थीम पर लड़ा जायेगा यद्यपि स्क्रिप्ट फ़िल्मी है राज खोसला की मेरा गाँव मेरा देश फ़िल्म से प्रेरित मेरी माटी मेरा देश यह नाम मालूम होता है..,
मोदी सत्ता की तिरंगा राजनीति पर लिखना होगा कि,-
ले गया छीन के
कौन तिरा सब्र
ओ करार के,भगवा
ध्वज पर जाँ छिड़कने
की उठाई थी क़सम
पर,हर घर तिरंगा
पर राजनीति करने
का कर लिया इरादा..!!!