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आईडिया ऑफ़ इंडिया की रक्षा करना राहुल का लक्ष्य है पर,इंडिया के खिलाफ खड़ी शक्तियों को सुप्रीम कोर्ट ने आईना दिखाते हुये कहा कि एक दिन भी सजा कम होती तो सांसदी न जाती के,देखियेगा संभलकर आईना,सामना आज है मुकाबिल का..,

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नितिन राजीव सिन्हा 

देश,इन दिनों दो राहे पर खड़ा है एक तरफ़ राहुल गांधी हैं जो सदन में मोदी सत्ता से यह सवाल पूछते हुए बेदख़ल कर दिये गये कि मित्र गौतम अदानी की शेल कंपनी में विदेश में आये बीस हज़ार करोड़ रूपये किसके हैं वहीं दूसरी तरफ़ पीएम मोदी है जो मणिपुर हिंसा पर विपक्ष के सवालों के जवाब देने से बच रहे हैं वे सदन में पाँव नहीं धर रहे हैं सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं बनना चाह रहे हैं जिस पर राज्यसभा के सभापति उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड ने विपक्षी नेताओं से बुधवार को कहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सदन में आने के लिये निर्देश नहीं जारी कर सकते हैं..,

वहीं शुक्रवार को राहुल गांधी के मानहानि मामले में हुई निचली अदालत की सजा जिसे गुजरात उच्च न्यायालय ने जारी रखा था पर,सुनवाई करते हुये सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एक दिन की भी सजा कम होती तो राहुल गांधी की सांसदी नहीं जाती इस तरह देश को यह संकेत जरूर मिल गया है कि ‘मानहानि के मामले में कांग्रेस नेता को अधिकतम सजा देने के निहितार्थ क्या थे..?’

वैसे,सुप्रीम कोर्ट ने यह ज़रूर कहा है कि राहुल का बयान गुड टेस्ट नहीं था सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति को लोगों के सामने भाषण देते हुए ज़्यादा सावधान रहना चाहिए पर,इस मामले में राहुल गांधी के दोष सिद्धि पर रोक लगा दी है इससे उनकी सांसदी बहाली होने के रास्ते साफ़ हो गये हैं..,

वहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि यह इंडिया की जीत है वे सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कहते हैं कि सत्य मेव जयते इस तरह राजनीति में वह दौर पुनः लौट कर आ गया है जबकि विपक्ष की आवाज़ मुखरित हो सकेगी जनता के सवालों पर मोदी सत्ता कटघरे में खडी की जायेगी..,

आईडिया ऑफ़ इंडिया नेहरू के दौर की वह परिकल्पना है जिसमें पक्ष विपक्ष एक दूसरे का नेतृत्व के स्तर पर पूर्ण सम्मान करते रहे हैं यह वह दौर था जब कोई शीर्ष नेता कांग्रेस की किसी महिला शीर्ष नेतृत्व को कांग्रेस की विधवा कहकर संबोधित नहीं करता था वह नैतिक उत्कर्ष का दौर था २०१४ के बाद का दौर नैतिक मूल्यों के पतन का दौर है..,

प्रख्यात पत्रकार स्वर्गीय राजेंद्र यादव कहा करते थे पहले के नेता लिखते थे पढ़ते थे किताबें लिखते थे पर, बदले हुये दौर में देखा जा रहा है कि पत्रकार जहां काम करते हैं उन संस्थानों को नेता के करीबी उद्योगपति मित्रद्वय ख़रीदते हैं स्याही से नाता तोड़ते हैं मक्खन से नाता जोड़ते हैं नेहरू काल और मोदी के अमृतकाल के बीच यह परिवर्तन समाज में आया है जिसमें आईडिया ऑफ़ मोदी का शोर है जिसके सापेक्ष राहुल गांधी बड़ी विनम्रता से आईडिया ऑफ़ इंडिया की रक्षा करने की बातें कर रहे हैं..,

मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर हैं कि,-

आईना क्यूँ न

दूँ कि तमाशा 

कहें जिसे ऐसा

कहाँ से लाऊँ कि,

तुझसा कहें जिसे..,

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