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"बूढ़ा कुकडा” आदिवासी का साथ और कांग्रेस का हाथ..,

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नितिन राजीव सिन्हा

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद 15 साल भाजपा की सत्ता रही यह वो दौर था जबकि आदिवासी पल पल मर रहा था हर पल अपनी जमीं के उस दो गज़ हिस्से को भी खोता जा रहा था जो उसके दफ़न के क़िस्से अपने आपमें समेटे हुए हों..,

इन दिनों चित्रकूट विधान सभा सीट पर उप चुनाव हो रहे हैं और इस चुनावी बेला में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों के हितों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है उन्होंने कहा है कि जेलों में बंद निर्दोष आदिवासियों को रिहा करने के काम उनकी सरकार कर रही है ध्यान रहे बस्तर की जेलों में पिछले १५ सालों से बिना कोई अपराध किये ही तक़रीबन २० हज़ार आदिवासी क़ैद हैं वक़ील करने के पैसे उनके पास नहीं हैं,उनके अपराध क्या हैं यह उन्हें मालूम नही है ऐसे में भूपेश सरकार ने इस समाज के साथ खड़ा होकर उनका विश्वास जीतने का काम किया है..,

इसके पहले ७००० हेक्टेयर ज़मीनें आदिवासियों को टाटा कम्पनी से वापस उनकी सरकार दिलवा चुकी है यह भी बस्तर के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई है..,

बस्तर,दुनिया के हिंसा ग्रस्त भू भागों में से एक है जहाँ ख़ूनी क्रांति के संवाहक “जल,जंगल और ज़मीन की सुरक्षा को लेकर विगत क़रीब चार दशकों से अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं पर,२००४ के बाद से भाजपा सरकार की ज़मीन के औद्योगिक प्रयोजन हेतु अधिग्रहण की नीति ने उन आदिवासियों को सलाखों के पीछे पहुँचा दिया जिनकी ज़मीनों पर औद्योगिक घरानों की नज़रें गड़ीथीं,इस दौर में वहाँ हिंसा बढ़ी क़रीब १५ हज़ार जानें जाया हुईं पर,रमन तब नीरो बने रहे “बस्तर,सुलगता रहा और वो..,”

यह भयावह परिदृश्य था जबकि जल,जंगल और ज़मीन की लूट मची थी आदिवासी समाज के लिये आगे कुआँ,पीछे खाई वाली दशा विद्यमान थी जिसका अब पटाक्षेप होता हुआ दिख रहा है..,

बस्तर में कुकडा लड़ाई)मुर्ग़ा लड़ाई)का चलन है यह वहाँ की परंपरा है विगत पंद्रह वर्षों में आदिवासी,रमन सिंह की फ़ौलादी पूँजीपति ताक़तों के साथ मुर्ग़ा लड़ाई लड़ रहा था,इस लड़ाई में आदिवासी बूढ़ा कुकडा साबित हुआ वह लगातार हार रहा था पूँजी बल की जवाँ हसरतों के सापेक्ष वह दो गज़ ज़मीं को भी मोहताज बना हुआ था..,जिसे इस तरह से शब्द संयोजन कर सकते हैं के,कभी बहादुर शाह ज़फ़र ने लिखा था उस सी दशा से बस्तर का आदिवासी समाज गुज़र चुका है-

कितना बदनसीब 

है,ज़फ़र

दफ़न के लिये

दो गज़ जमीं

भी न मिली

कू-ए-यार में..,

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