नितिन राजीव सिन्हा
रमन सिंह,बृजमोहन अग्रवाल,ननकीराम कंवर,रामविचार नेताम,पुन्नू लाल मोहिले,दयाल दास बघेल,धरम लाल कौशिक,कृष्ण मूर्ति बांधी और अजय चंद्राकर के इस चुनाव में कड़े टक्कर में फँस जाने की खबरें चर्चा में है वहीं कांग्रेस के दिग्गज अमरजीत भगत,मोहन मरकाम,अनिला भेड़िया,कवासी लखमा तथा गुरू रूद्र कुमार के कड़े संघर्ष में होने के क़यास लग रहे हैं पर,नरेंद्र मोदी के सापेक्ष कसौटी पर जनता मतदाताओं के दृष्टिकोण से कसा गया तो सीएम भूपेश बघेल खरा उतरे हैं सो,आक्रामक चुनाव प्रचार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी ज़मीन पर टिक न सकी वैसे २०१८ की तुलना में सीट संख्या में इज़ाफ़ा होने की संभावना है पर,दिल्ली दूर वाली कहावत मूर्त रूप लेती हुई दिखाई पड़ी है..,
पीएम नरेंद्र दामोदर दास मोदी एक बार फिर गली गली भटककर पसीना बहाते हुये छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव २०२३ में दिखाई दिये पर,नतीजा वही कर्नाटक अगे पीछे हिमाचल वाला बनता हुआ दिखाई पड़ रहा है..,
जब मोदी शाह छत्तीसगढ़ से वापस लौटे तो मतदान दिवस पर मतदाताओं ने वह कर दिया कि भाजपा के पाँव तले ज़मीन खिसकी हुई दिखाई पड़ रही है अमित शाह ने जो बिसात बिछाई थी वह अरविंद नेताम की हमर राज पार्टी और जोगी कांग्रेस के कंधे पर रखकर बंदूक़ चलाने की कोशिश करने के तौर पर थी ताकि कांग्रेस के वोट काटे जा सकें पर,उसका निशाना चूक गया प्रतीत होता है क्योंकि घोषणापत्र जो भारतीय जनता पार्टी ने जारी किया था वह प्रभाव छोड न पाया स्थिति साख बचाने की बन पड़ी थी सो,कथित महादेव एप घोटाला पर पीएम मोदी गले फाड़ते रहे पर,झूठ का असर जन मानस पर नहीं हुआ एक बार फिर से मोदी शाह के नेतृत्व में भाजपा बड़ी हार की ओर बढ़ चली है जानकारों का मानना है कि बाईस से तीस सीट के आस पास भाजपा के सिमट जाने की संभावनायें हैं..,
पहले दौर के बीस सीटों पर हुए मतदान में कांग्रेस दस से तेरह सीटों पर चुनाव जीतती हुई दिख रही है वहीं दूसरे दौर के मतदान में सरगुजा संभाग में कड़ी टक्कर के बावजूद सात सीटों पर कांग्रेस मज़बूत दिख रही है जानकारों का आंकलन है कि सरकार के कामकाज पर मतदान यदि हुआ तो सीट तक कांग्रेस जीत सकती है वहीं बिलासपुर लोकसभा की आठ में से पाँच सीटें,जांजगीर लोकसभा की आठ में से चार या पाँच सीटों पर कांग्रेस की बढ़त है रायगढ़ लोकसभा सीट की आठ में से छह सीटों पर कांग्रेस का पलड़ा भारी है महासमुंद लोकसभा सीट की आठ में से सात सीटें कांग्रेस को जाती हुई दिख रही है रायपुर लोकसभा सीट की आठ में से पाँच पर कांग्रेस,राजनांदगाँव लोकसभा सीट की छह सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी मज़बूत है वहीं दुर्ग लोकसभा की पाँच सीटों पर कांग्रेस मज़बूत है बस्तर संभाग की बारह में बराबरी की टक्कर है तथा रायपुर लोकसभा सीट की आठ में से रायपुर उत्तर,रायपुर ग्रामीण,आरंग,बलौदाबाजार,अभनपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी बेहतर कर रहे हैं वहीं रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल और कांग्रेस के महंत रामसुंदर दास के बीच कड़ी टक्कर है भाटापारा सीट पर भाजपा प्रत्याशी मज़बूत हैं पर,अप्रत्याशित परिणाम के क़यास कांग्रेस ख़ेमे में हैं..,
बिलाईगढ़,पामगढ़ और जैजैपुर में बसपा प्रत्याशी मज़बूती से मैदान में हैं कोटा और लोरमी विधानसभा सीट पर जोगी कांग्रेस का मुक़ाबला कांग्रेस से है,पाली तानाखार विधानसभा सीट पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी मज़बूत है तथा बालोद विधानसभा सीट पर कांग्रेस को कांग्रेस की बाग़ी प्रत्याशी से नुक़सान होता हुआ दिख रहा है भरतपुर सोनहत सीट पर भी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार मज़बूत हैं मंत्री कवासी लखमा को इस चुनाव में पहले की तुलना में बडी चुनौती मिलती हुई दिखी है..,
संभाग बनाने की घोषणा का असर यदि हुआ तो रायगढ़ और कोरिया की सीट पर कांग्रेस प्रत्याशियों को अतिरिक्त फ़ायदा मिल सकता हैं वैसे यह चुनाव पाँच साल की कांग्रेस सरकार और पंद्रह सालों की रमन सिंह सरकार के कामकाज का तुलनात्मक आंकलन है जिसमें जो खरा उतरेगा वह मैदान मार ले जायेगा..,
२०१८ के चुनाव में कांग्रेस जिन २२ मैदानी सीटों पर चुनाव हारी थी उसमें से बिल्हा,मुंगेली,मस्तूरी,कोटा,पामगढ़,
अकलतरा,मरवाही,कुरूद,धमतरी,बिंद्रा नवागढ ,खैरागढ,जांजगीर,रायपुर दक्षिण भाटापारा,लोरमी,कोटा,मस्तूरी और राजनांदगाँव में से एकाध अपवाद को छोड़कर शेष में वापसी करती हुई दिखाई पड़ रही है वहीं बेलतरा विधानसभा सीट का ग्रामीण क्षेत्र कांग्रेस के पक्ष में दिख रहा है पर,शहरी इलाक़ा कमजोर प्रतीत हो रहा है सो,इस सीट पर संशय क़ायम है
जबकि भाजपा प्रत्याशी रायगढ़,लैलुंगा,चंदरपुर समेत बस्तर संभाग की चुनिंदा सोंटों पर वापसी करते हुये दिख रहे हैं वहीं दो तीन शहरी विधानसभा सीटों पर उनके बढ़त बनाने की संभावनायें भी दिख रही है..,
इस चुनाव में कांग्रेस ने किसान मजदूर पर फ़ोकस करने के साथ ही महिलाओं को भी प्रत्यक्ष लाभ से जोड़कर चुनाव प्रचार किया है वहीं भाजपा ने भी किसान महिला पर फ़ोकस किया लेकिन भरोसा जन साधारण का भूपेश बघेल सरकार पर क़ायम रहा भाजपा लगातार साख के संकट से गुजरती रही उनके पंद्रह साल की पूँजीवादी सत्ता के सापेक्ष कांग्रेस की जनकल्याण की नीतियों की तुलना होती रही फिर भी चुनाव में भाजपा मोदी के चेहरे पर ज़्यादा भरोसा न करते हुये बाँटो और वोट बटोरो की नीतियों पर चलती हुई ही नज़र आई..,
पूरे चुनाव का मुद्दा किसान और महिला केंद्रित रहा है जिसमें भाजपा ने महिलाओं से फ़ॉर्म भरवाया उन्हें बारह हज़ार रुपये सरकार बनने पर खातों में आने का आश्वासन दिया है पर,फार्म में न बैंक खाता नंबर लिया गया है न आधार कार्ड नंबर किस कार्यालय को यह फार्म जायेगा यह भी नहीं बताया है मसलन मुमकिन बाबू की फ़ोटो लगाकर बड़ा चुनावी फ़र्ज़ीवाडा करने का प्रयास किया गया है,जो अनैतिक हैं यह संकेत है कि भाजपा नेतृत्व हड़बड़ाहट में है वह कुछ करने की बजाय कुछ भी करने पर उतारू हुआ है यह उनकी सियासी शिकस्त की मानसिकता को परिभाषित करता है..,
मिर्ज़ा गालिब के शेर टीम मोदी की दास्ताँ बयां करते हैं कि,-
न गुल ए नगमा
हूँ न पर्व ए साज,
मैं हूँ अपनी शिकस्त
की आवाज़..,