काव्य कलश: ख़्वाबों के दफ़न होने के दिन आये....
ख़्वाबों के दफ़न
होने के दिन आये
दीदार था या मौत था
कफ़न का अन्दाज़
कुछ यूँ बदला के,
मौत आई पर हुस्न
की झलक देख
लेने की ललक
कम न हुई ज़िंदा
थे तो जन्नत नसीब
न थी मर जो गये
हूरों ने दामन अपना
थाम लिया..,
"नितिन राजीव सिन्हा"