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कमांडो की कहानी उनकी ही जुबानी सुनिए जो देश की सड़ी-गली और भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते-लड़ते थक चुके तो है पर हारे नहीं...सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाना महंगा पड़ रहा है जवान को

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सिस्टम से लड़ते लड़ते गुजर गए पांच साल अब तक हूँ खाली हाथ..बर्खास्त सी आर पी एफ जबान की कथा उनकी ज़ुबानी 

मै सूजोय मंडल पूर्व कोबरा कमांडो सी आर पी एफ 206 वी बटालियन जो वर्ष 2014 मे चिँतागुफा सुकमा मे तैनात था.उस समय लोकसभा चुनाव की ड्यूटी के दौरान हम मतदान दल को छोड़ कर वापस आ रहॆ थे,तभी नक्सलियों की घात लगाकर बैठे दल ने हम पर हमला बोल दिया.मैने अपने सी.ओ. रमेश कुमार सिंह को जिस रास्ते से हम गये थे उससे वापस आने को मना किया गया था यह कोबरा के नियमों का उल्लंघन था. वो माने नहीँ दूसरा अप्रशिक्षित जवानो की टीम जिन्हे कोबरा की बेसिक ट्रैनिंग नहीँ मिली थी उसमे से कूछ जवान बीमार भी थे उन्हे साथ ले जाने को भी मना किया गया था. सी.ओ. रमेश कुमार सिंह ने मुझे कहा तू सिपाही है मुझे मत सीखा बोलकर बटालियन के सारे नियमों को दरकिनार कर अपनी मर्जी से उसी सड़क पर से गस्ती टीम को वापस लाया गया परिणाम स्वरूप अत्यंत दुखद हुआ और हमारे तीन साथी मौके पर ही शहिद हो गए जबकि पाँच लोग गंभीर रूप से घायल हुये थे. पांच घायलों में से एक मै भी था. मेरी टीम से शहीद होने वाला कमांडो चंद्रकांत घोष मेरा मौसेरा भाई था. जिसकी शहादत ने मुझे पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया था मैने कैम्प में जाना की मेरा डी सी रेंकिंग का अधिकारी कितना जल्लाद हो सकता है.मेरे विद्रोह करने के बाद मेरे साथ अमानवीय व्यवहार किया गया. मेरा इलाज भी नियमानुसार नहीँ होने दिया. दो साल की गंभीर तकलीफ के बाद मेरे सच बोलने की कीमत मुझे पहले निलम्बित करके दिया गया.आज अकारण मुझे सी आर पी एफ़ 206 से बाहर कर दिया गया है.मै सिस्टम से आज भी लड़ रहा हूँ समय बीतता चला गया देखते ही देखते 5 वर्ष बीत गया और अब 2019 की लोकसभा चुनाव भी हो गया है, मगर मुझे अब तक न्याय नहीं मिला। लगता है जहाँ तंत्र पूरी तरह से सड़ चूका हो वँहा न्याय की बात करना बेमानी है. यंहा सिर्फ आताताई अधिकारियो की ही चलती है जो  ऊनके अड़ियल रवैये के चलते लगातार जवानों को जान जोखिम में डालना पड़ता है.

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