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कट्टपा साबित हुये सितारमैय्या...? कांग्रेसियों ने ही गिराई है कुमार स्वामी देवगौड़ा की सरकार

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बेंगलुरु से मोहन मैनन नई दिल्ली से नाजिम अहमद

कर्नाटक में कुमार स्वामी की साझा सरकार बच सकती थी अगर कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता अपने स्तर पर प्रयास करते, कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सीता रमैया का परदे के पीछे सियासत का जो रवैया रहा है उसकी वजह से ही जनता दल एस तथा कांग्रेस की सहयोगी सरकार को हार का मुंह देखना पड़ा, कांग्रेस के तमाम नेता भले ही यह बार-बार कह रहे हो की कुमार स्वामी की सरकार गिराने में भाजपा ने पर्दे के पीछे रहकर तमाम तरह के हथकंडे अपनाए और उनके विधायकों को भाजपा के एक बड़े नेता के जहाज पर लेकर मुंबई गए और उनको जनता दल एस तथा कांग्रेसी सरकार से दूरी बनाए रखवाने में अहम भूमिका निभाई।
लेकिन हकीकत में कुछ और ही है, यंहा यह बताना उचित होगा की  aajkadinnews.com  पूर्व में भी इस तरह की खबर प्रकाशित की थी की देव गौड़ा परिवार से बदला ले रहे हैं सीतारमैया, यह बात एक दम सच साबित हुई है। aajkadinnews.com को मिली जानकारी के मुताबिक कुमार स्वामी की सरकार गिराने में तथा सदन में अल्पमत में लाने में पूर्व मुख्यमंत्री सीतारमैया की परदे के पीछे अहम भूमिका रही है। दबे मुंह कांग्रेस के कई बड़े नेता भी इस बात को स्वीकार करते हैं, सच यह है की सीतारमैया ने  जानबूझकर के कर्नाटक की साझा सरकार को गिरा दिया, वरना वे चाहते तो कुमार स्वामी की सरकार सदन के पटल पर अपना पूर्ण बहुमत साबित कर सकते थे यह अलग बात है कि परदे के पीछे कई भाजपा नेता भी अहम भूमिका में रहे हैं और उसी का फायदा भाजपा नेतृत्व को मिला। भाजपा चाहती थी यह सरकार उनके बलबूते पर ही गिरे और उस पर कोई लांछन ना लगे और वही सच साबित हुआ।
14 माह पुरानी सरकार में कई ऐसे अवसर आए हैं हैं जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा तथा उनके मुख्यमंत्री पुत्र को कांग्रेस के दबाव के चलते तमाम असहज स्थितियों से ही रूबरू होना पड़ा यहां तक की कांग्रेस के बढ़ते दबाव की वजह से कुमार स्वामी पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने रो पड़े थे थे इसको पूरे देश की मीडिया ने देखा, कांग्रेस कि यह फितरत रही है की पहले तो वे पूरी तौर पर सहयोग देने की बात करते हैं और जब मौका आता है तो अपने सहयोग से चलने वाली सरकार को गिरा देते हैं ऐसा तब होता है जब सहयोगी दल कांग्रेस के तमाम अनैतिक कार्यों को करने से मना कर देते हैं, कहा जाता है की कुमार स्वामी के साथ भी ऐसा ही हुआ।  aajkadinnews.com को मिली जानकारी के मुताबिक कुमार स्वामी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के 2 महीने के बाद ही तमाम तरह के दबाव पड़ने शुरू हो गए थे इसको लेकर देवगौड़ा को भी यह बात कहना पड़ा था की क्यों ना विधानसभा भंग कर देने की सिफारिश की जाए, अब जबकि कुमार स्वामी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे चुके  हैं और भाजपा की सरकार आने की आमद हो चुकी है उन हालात में सवाल उठता है की क्या कभी भविष्य में भी समान विचारधारा वाला दल कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा व विधानसभा का चुनाव लड़ेगा अपने आप में में एक विचारणीय सवाल है। और उन दलों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है जो कभी न कभी कांग्रेस के सहयोग से अपनी सरकार बनाते रहे हैं। इतिहास बताता है कांग्रेस ने जब जब किसी थर्ड फ्रंट की सरकार को चाहे वह केंद्र में हो या राज्य में सहयोग किया है यह सरकारें अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई इसलिए इस बात कि अब कम ही संभावना है की अगले कुछ महीनों में जिन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं शायद ही कोई दल कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करें व अपनी सरकार बनाएं। स्पष्ट है कि इसका पूरा फायदा भाजपा को ही मिलेगा अगर कांग्रेस पार्टी ने अपना रवैया नहीं बदला तो कांग्रेस को जिस तरह देश के मतदाताओं ने लोकसभा में अछूत करार दिया है,विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा का नेतृत्व करने वाली प्रगतिशील विचारधारा वाली पार्टियां कांग्रेस का साथ नहीं देगी इसलिए बेहतर है कि कांग्रेस अपना सामंतवादी रवैया बदले वरना जहां कांग्रेस पार्टी खड़ी है इससे भी बदतर हालात हों जाएंगे। इस बात का अहसास तमाम कांग्रेसी नेताओं को भी है कांग्रेस का एक बड़ा गुट मानता है की अगर सीतारमैया एंड कंपनी चाहती तो कुमार स्वामी देव गौड़ा की सरकार बच सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया।

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