नितिन राजीव सिन्हा
बहुतबड़ी बात है कि जब हम उस पीढ़ी से रूबरू होते हैं जिन्होंने छत्तीसगढ़ को उसके वनों की प्रचुरता के साथ देखा है नैयर जी ने १९५७-५८ के दौर पर चर्चा करते हुए कहा कि एक अवसर पर उन्होंने देखा कि रायपुर से जगदलपुर जाते हुए कुरुद से घने जंगल की शुरुआत हो जाती थी जंगल ऐसे कि ऊपर आसमाँ नहीं दिखते थे,आदिवासी कपड़े के न्यूनतम इस्तेमाल के युग से तब बाहर नहीं निकले थे बस्तर प्रवेश करते ही उन्होंने देखा कि एक अर्धनग्न महिला कहीं जा रही है पर,उस महिला पर उनकी उत्सुकता परवान चढ़े उससे पहले ही वह गुम हो गई खोजने के प्रयास हुए तो देखा कि एक ऊँचे दरख़्त के शीर्ष पर वह चढ़ी हुई थी मतलब आदिवासी वृक्ष का साथी था और अब भी है वह विकास के संवाहक पीढ़ी से भयभीत रहता है उनसे बचने के रास्ते वह खोज लेता है..,
प्रवीर चंद्र भंजदेव काकतीय वंशी बस्तर नरेश थे ब्रिटेन में पढ़ा हुआ प्रकृति का पुजारी ख़ूबसूरत राजा था वह पेड़ नहीं कटने देता था उनकी हत्या १९६६ में हुई इसके बाद बस्तर बदला “काकतीया विश्वविद्यालय के वाम विचारधारा के लोग निकल कर आये आदिवासियों की मृत राजा के प्रति संवेदनशीलता को उभारा फिर विघ्नसंतोष की क्यारियों पर विपदा के फूल खिले बेबस आदिवासी बेज़ुबाँ था उसे उसके मुद्दे पर विमर्श करने का अवसर मिला फिर,जो हो रहा है वह अख़बारों की सुर्ख़ियाँ बटोर रहा है..,
इस बैठक में क़रीब ४ घंटे पत्रकार के सामने आने वाली चुनौतियों पर सार्थक चर्चा हुई हाल के वर्षों में हुई पत्रकारों की हत्या जैसी चुनौतियों पर भी बातें हुईं और भी बहुत कुछ..,