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पूर्वजों के स्मरण का शुभ पर्व पितृ पक्ष 14 से

 

15 दिन पितरों का तर्पण करने से सफल होते हैं सब काज 

रायपुर- प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी महालय (पितृपक्ष) स्नान दान पूर्णिमा 14 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार साल में उक्त 15 दिवस पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण करने से परिजनों का सभी कामकाज सफल होते हैं। पूर्वजों का आशीर्वाद ही संततियों के शुभ कार्य को बिना विघ्र बाधा के संपन्न होता है। राजधानी सहित प्रदेश में इस वर्ष पितृ पक्ष के अवसर पर 14 सितंबर को पतितपावनी शिवनाथ, खारून, अरपा, इंद्रावती, केलो नदी, महानदी सहित विभिन्न नदियों एवं सरोवरों में पहुंचकर परिजनों द्वारा अपने पूर्वजों को अंजुली में जल भरकर स्मरण कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाएंगे। पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किया जाता है.  मान्यता है कि अगर पितर नाराज हो जाएं तो व्यक्ति का जीवन भी खुशहाल नहीं रहता और उसे कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यही नहीं घर में अशांति फैलती है और व्यापार व गृहस्थी में भी हानि झेलनी पड़ती है. ऐसे में पितरों को तृप्त करना और उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध करना जरूरी माना जाता है. श्राद्ध के जरिए पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है और पिंड दान कर उनकी आत्मा की शांति की कामना की जाती है.

कब है पितृ पक्ष 

हिन्दू पंचांग के मुताबिक पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ते हैं. इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि समाप्ति अमावस्या पर होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक हर साल सितंबर महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत होती है. आमतौर पर पितृ पक्ष 16 दिनों का होता है. इस बार पितृ पक्ष 14 सितंबर से शुरू होकर 28 सितंबर को खत्म होगा.

श्राद्ध की तिथियां

14 सितंबर- प्रतिपदा, 15 सितंबर-  द्वितीया, 16 सितंबर- तृतीया, 17 सितंबर- चतुर्थी, 18 सितंबर- पंचमी, महा भरणी, 19 सितंबर- षष्ठी, 20 सितंबर- सप्तमी, 21 सितंबर- अष्टमी, 22 सितंबर- नवमी, 23 सितंबर- दशमी, 24 सितंबर- एकादशी, 25 सितंबर- द्वादशी, 26 सितंबर- त्रयोदशी, 27 सितंबर- चतुर्दशी, 28 सितंबर- सर्वपित्र अमावस्या.

पितृ पक्ष का महत्व 

हिन्दू धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है. हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध करना बेहद जरूरी होता है. मान्यता है कि अगर श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है. वहीं कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वे प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरों को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं. इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी हो जाती है. 

पितृ पक्ष में किस दिन करें श्राद्ध

दिवंगत परिजन की मृत्यु की तिथ िमें ही श्राद्ध किया जाता है. यानी कि अगर परिजन की मृत्यु प्रतिपदा के दिन हुई है तो प्रतिपदा के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए. आमतौर पर पितृ पक्ष में इस तरह श्राद्ध की तिथ िका चयन किया जाता है: 

- जिन परिजनों की अकाल मृत्यु या किसी दुर्घटना या आत्महत्या का मामला हो तो श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है. 

- दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और मां का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है. 

- जिन पितरों के मरने की तिथि याद न हो या पता न हो तो अमावस्या के दिन श्राद्ध करना चाहिए. 

- अगर कोई महिल सुहागिन मृत्यु को प्राप्त हुई हो तो उसका श्राद्ध नवमी को करना चाहिए. 

- संन्यासी का श्राद्ध द्वादशी को किया जाता है. 

श्राद्ध के नियम

- पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है.

- इस दौरान पिंड दान करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है. 

- इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि देवताओं की नित्य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए. 

- श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है. 

- इस दौरान रंगीन फूलों का इस्तेमाल भी वर्जित है.

- पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है.

- इस दौरान कई लोग नए वस्त्र, नया भवन, गहने या अन्य कीमती सामान नहीं खरीदते हैं. 

श्राद्ध कैसे करें

- श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें. 

- श्राद्ध करने के लिए आप किसी विद्वान पुरोहित को बुला सकते हैं. 

- श्राद्ध के दिन अपनी सामथर््य के अनुसार अच्छा खाना बनाएं. 

- खासतौर से आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं. 

- खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें. 

- मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं. 

- इस दौरान पंचबलि भी दी जाती है. 

- शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि. 

- यहां पर बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्या से नहीं बल्कि श्राद्ध के दौरान इन सभी को खाना खिलाया जाता है. 

- तर्पण और पिंड दान करने के बाद पुरोहित या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें. 

- ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल हैं. 

- ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे. 

- इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें.

पितृ पक्ष की कथा

पितृ पक्ष की पौराणिक कथा के अनुसार जोगे और भोगे नाम के दो भाई थे. दोनों अलग-अलग रहते थे. जोगे अमीर था और भोगे गरीब. दोनों भाइयों में तो प्रेम था लेकिन जोगे की पत्नी को धन का बहुत अभिमान था. वहीं, भोगे की पत्नी बड़ी सरल और सहृदय थी. पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा तो जोगे उसे बेकार की बात समझकर टालने की कोशिश करने लगा. पत्नी को लगता था कि अगर श्राद्ध नहीं किया गया तो लोग बातें बनाएंगे. उसने सोचा कि अपने मायके के लोगों को दावत पर बुलाने और लोगों को शान दिखाने का यह सही अवसर है. फिर उसने जोगे से कहा, ‘आप ऐसा शायद मेरी परेशानी की वजह से बोल रहे हैं. मुझे कोई परेशानी नहीं होगी. मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी और हम दोनों मिलकर सारा काप निपटा लेंगे.’ इसके बाद उसने जोगे को अपने मायके न्यौता देने के लिए भेज दिया। 

 

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