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चुनाव खर्च: 60,000 करोड़ रुपए में से लगभग आधा,45 प्रतिशत 27,000 करोड़ रुपए सिर्फ [भाजपा]ने व्यय किया..

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डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाना चाहते हैं,एक फंडामेंटल मुद्दा है और वो है कि आप कहाँ तक, किस हद कर, किस आयाम तक भारतीय चुनावों का व्यापारीकरण करेंगे,कमर्शिलाइजेशन करेंगे।

एक चिंताजनक रिपोर्ट आई है,स्थापित संस्था द्वारा, जो अपनी जांच,रिसर्च के लिए जानी-मानी है, सेंटर फॉर मीडिया स्टडी, एक स्वतंत्र संस्था है। उन्होंने ये अनुमान लगाया है कि लगभग 60,000 करोड़ रुपए इस चुनाव में जो अभी खत्म हुआ, व्यय हुआ है। ये आंकड़ा अपने आपमें चिंता का विषय है और हम ये आपके समक्ष रखना चाहते हैं और देश के समक्ष उठाना चाहते हैं।
इससे भी ज्यादा चिंताजनक बिंदु है कि इस 60,000 करोड़ रुपए में से लगभग आधा,45 प्रतिशत 27,000 करोड़ रुपए सिर्फ एक पार्टी ने व्यय किया। एक पार्टी,सत्तारुढ़ पार्टी ने 45 प्रतिशत इसका, यानि लगभग 27,000 करोड़ रुपए व्यय किया है।
तीसरा बिंदु कि बाकी सब पार्टियां कोई निकट दूसरे स्थान पर नहीं थी, दूर थीं,बहुत दूर थी – 15 प्रतिशत, 10 प्रतिशत,20 प्रतिशत इत्यादि।
आपको एक तुलनात्मक रुप से एक संदर्भ देने के लिए ये बताना आवश्यक है कि 27,000 करोड़ रुपए भारत के शिक्षा के कुल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा होता है। यानि पूरे भारत देश का शिक्षा का बजट इससे तीन गुना होता है। यह हमारे स्वास्थ्य के अखिल भारतीय बजट का 40 या 43 प्रतिशत होता है, यानि आधे से थोड़ा कम। बीजेपी द्वारा चुनाव में किया कथित खर्च यानि 27,000 करोड़ रुपए, भारत के रक्षा बजट का 10 प्रतिशत हिस्सा है। भारत ही क्यों, विश्व की सबसे बड़ी निर्माण की जो स्कीम है मनरेगा, उसका 45 प्रतिशत है ये 27,000 करोड़ रुपए और नमामि गंगे पूरे पिछले 5 वर्षों में यानि 2014 से 2019 के दौरान मोदी सरकार के पूरे नमामि गंगे के प्रोजेक्ट में 24,000 करोड़ व्यय किया सरकार ने, पूरे नमामि गंगे पर और गंगा लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर लंबी है और इस बार चुनाव में 27,000 करोड़ रुपए खर्च किया। इसका सातवां बिंदु अगर आप देखें, वो भी रोचक है कि 1998 और 2019 के बीच में यानि लगभग 21 वर्षों में ये करीब-करीब 6-7 गुना बढ़ गया है,अखिल भारतीय स्तर पर, पूरा व्यय। 10,000 करोड़ से थोड़ा कम और अब 60,000 करोड़ रुपए। ये सब आंकड़े उस स्टड़ी में दिए गए हैं। ये मुद्दा सिर्फ आंकड़ों का नहीं है, ये मुद्दा है एक समतल जमीन का और आज समतल जमीन का मतलब सिर्फ लेवल प्लेइंग फील्ड से नहीं, समतल जमीन का मतलब होता है कि Without a level playing field, you cannot have a fair, independent and objective, non-partisan elections and if you cannot have fair level playing field elections, then you cannot have democracy and if you can’t have democracy, you cannot have basic structure of the Indian Constitution. क्योंकि ये भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न अंग है और कहीं ना कहीं ये इस समतल जमीन, लेवल प्लेइंग फील्ड को विकृत करता है। अगर आप वोटर के हिसाब से यानि कितने वोटर होते हैं, एक संसदीय कांस्टिट्यूंसी में, उसका नया आयाम लें तो उसका एक चौंकाना वाला फिगर आता है कि 60,000 करोड़ के आंकड़े को अगर आप भारत में सामूहिक रुप से जितने वोटर हैं, उतने लाखों-करोड़ों से गणित में डिवाइड करें तो 100 करोड़ प्रति पार्लियामेंट्री कांस्टिट्यूंसी, संसदीय क्षेत्र का चौंकाने वाला आंकड़ा आता है और इन 100 करोड़ में से 45 प्रतिशत एक पार्टी ने एक कांस्टिट्यूंसी के लिए खर्च किया होगा। यानि लगभग 45 करोड़, बीजेपी ने प्रति संसदीय क्षेत्र में खर्च किया है।
हम इसका व्यंग कर सकते हैं, हम आपको कह सकते हैं कि भाजपा ने ये चुनावी नीति अपनाई है कि पैसे फैंको। हम ये भी कह सकते हैं कि भाजपा ने धनबल एक चुनावी हल निकाला है। हम ये भी कह सकते हैं,पुराने मुहावरा जैसे, कि भाजपा के लिए जनता बड़ी है या नहीं है, इसमें संदेह हो सकता है कि जनता बड़ी हो या ना हो भईया, पर the whole thing is सबसे बड़ा रुपया।
हम पहली मांग ये करेंगे कि इतने बड़े पैमाने पर 45 प्रतिशत का जो व्यय हुआ है, उसके सोर्सिज बताएं।
दूसरा याद दिलाएंगे, माननीय प्रधानमंत्री को कि नोटबंदी के बाद जो वायदा था, तो प्रत्यक्ष आपको देश के सामने बता चाहिए कि ये सब स्त्रोत हम तो सिर्फ रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, ये हमारे आरोप नहीं हैं, ये जांच ने बताया है, ये रिसर्च ने बताया है, तो कृपया देश से शेयर करें कि इसमें से कितना नंबर वन है, कितना नंबर टू है और वो सोर्स से मालूम पड़ जाएगा।
तीसरा, क्या बहुत अधिक मात्रा में इसका हिस्सा ये नए इलेक्ट्रोल बांड के विषय से नहीं आया है, जरिए ये नहीं आया है क्या और भविष्य में इतना ज्यादा व्यापारीकरण, कमर्शियलाइजेशन,इंडस्ट्रीलाइजेशन ऑफ इलेक्शन,मॉनिटाइजेशन ऑफ इलेक्शन किया जाएगा तो उसके विषय में सरकार क्या करना चाहेगी और सत्तारुढ़ पार्टी क्या कहना चाहेगी? उसके विषय में भी एक वाइट पेपर दें, श्वेत पत्र दें और नहीं तो देश को अवगत कराएं।
सत्ताधारी दल के पक्ष में बनाए गए अपारदर्शी इलेक्ट्रोल बांड स्कीम में सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाया है, जिसकी कमियों के बारे में कांग्रेस पार्टी ने बार-बार आवाज उठाई है और कांग्रेस पार्टी ने इस बांड स्कीम को बंद करने का चुनाव में वायदा भी किया था।
कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय चुनाव कोष स्थापित करने की मांग करती है, जिसमें कोई भी व्यक्ति योगदान कर सके और जिसका कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को चुनाव के समय धन आवंटित किया जाए।
इसी संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि जो डिटेल डिस्क्लोज कर रहे हैं, वो 27,000 करोड़ के नहीं हैं, ये उनके रिटर्न के हैं, मैं तो रिपोर्ट की बात कर रहा हूं। इस रिपोर्ट के अनुसार 60,000 करोड़ में से 27,000 करोड़ एक विशेष पार्टी ने खर्च किए हैं, जो रिटर्न डिस्क्लोज हुए हैं वो 27,000 करोड़ के नहीं हैं।
मैं तो सरकार से जवाब मांग रहा हूं, मैं तो रिपोर्ट के आधार पर सरकार से जवाब मांग रहा हूं। आप उसको खंडित करिए। आप आंकड़ों के आधार पर कल 15 सैंकड में इसको खंडित कर सकते हैं।
एक अन्य प्रश्न पर कि आप ये कहना चाहते हैं कि जो भाजपा ने चुनाव आयोग में रिपोर्ट जमा कराई है या कराने जाएगी, वो गलत है और जो रिपोर्ट आई है, वो सही है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं ये नहीं कह रहा हूं, ये आंकड़ा कहीं भी किसी ने उसके विषय में कोई टिप्पणी नहीं की है, हम पहली टिप्पणी कर रहे हैं, सत्तारुढ़ पार्टी ने इसके विषय में कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन एक बात निश्चित है, हम भी जानते हैं, आप भी जानते हैं कि इस रिपोर्ट ने रिसर्च के आधार पर प्रकाशित किया है सामूहिक एक्सपेंडिचर और उसका आंकड़ा 45 प्रतिशत बीजेपी ने लगाया है। तो कोई किसी ने ये तो नहीं कहा, क्या बीजेपी ने ये कहा है कि हमने इस चुनाव में 27,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं तो कैसे रिटर्न फाइल कर सकते हैं। तो हम तो एक्सपलानेशन मांग रहे हैं,

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