एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी को उसके कर्तव्यपरायणता की कीमत उम्रकैद के रूप में मिली है।वर्ष 1990 के हिरासत में मौत मामले में गुजरात की जामनगर कोर्ट ने आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई है. 1990 में जामनगर में भारत बंद के दौरान हिंसा हो गई थी. उस दौरान संजीव भट्ट जामनगर के एएसपी थे. हिंसा के दौरान 133 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.इसी दौरान किसी थाने में हिरासत में रखे गए एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।वर्ष 2011 में जब संजीव भट्ट सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के खिलाफ गए तो गुजरात सरकार को इस केस का याद आया और सीधे संजीव भट्ट को हिरासत में रखे गए व्यक्ति की मौत का जिम्मेदार माना गया।गड़े मुद्दे उखाड़े गए,मनगढ़ंत कहानी बनाई गई, नए गवाह आये और अपना खुद का जज भी बिठा दिया और 29 साल बाद संजीव भट्ट को फर्जी मामले में उम्रकैद दे दिया।यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि संजीव भट्ट ने गुज़रात दंगों पर मोदी की असलियत देश को बताई थी।अगर संजीव भट्ट मोदी के हाँ में हाँ मिलाते तो आज किसी डोभाल की तरह मोदी के आंखों के तारे होते।देश देख लो जिसे प्रधानमंत्री चुने हो वो सत्ता का गलत फायदा उठा एक व्यक्ति को तिल तिल कर मार रहा है।संजीव भट्ट तुम हीरो हो।जेल में मार डाले जाओगे तब भी हीरो ही रहोगे।ये आदमी प्रधानमंत्री बनकर भी विलेन के रूप में इतिहास में जाना जाएगा।
"विक्रम सिंह चौहान"