सिलचर, 23 फरवरी। असम विश्वविद्यालय के छात्रों ने कैंसर के बढ़ते प्रकोप और इसकी रोकथाम का निर्णय लिया है। सिलचर के कचर कैंसर अस्पताल में आयेाजित कार्यशाला में भाग लेते हुए 10 से अधिक कॉलेजों के राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) इकाइयों के कार्यक्रम अधिकारियों और स्वयंसेवकों ने बराक वैली (बराक घाटी) में कैंसर के प्रसार को कम करने के बारे में योजना बनाई। एनएसएस के स्वयंसेवक विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में काम करते हैं। यह कार्यशाला, संबंध हेल्थ फाउंडेशन (एसएचएफ) और असम कैंसर केयर फाउंडेशन (एसीसीएफ) द्वारा एनएसएस अधिकारियों और स्वयंसेवकों को संवेदनशील बनाने के लिए और उन्हें समुदाय के साथ जोड़ने की गतिविधियों की योजना बनाने में मदद करने के लिए आयोजित की गई।
इस मौके पर असम विश्वविद्यालय के एनएसएस कार्यक्रम समन्वयक एम. गंगाभूषण ने कहा कि पुरुषों में सभी तरह के कैंसर का 50 प्रतिशत और महिलाओं में 25 प्रतिशत तम्बाकू के कारण होता है और असम में तांबूल के अतिरिक्त उपयोग के कारण यहां इसका प्रतिशत अधिक है। तांबूल का सेवन भी कैंसर के कारणों में एक है। तंबाकू सेवन न केवल कैंसर बल्कि कई अन्य बीमारियों का कारण है। उन्होंने कहा कि असम में प्रति वर्ष 34,000 से अधिक लोग तंबाकू से संबंधित बीमारियों के कारण मर जाते हैं। यह केवल मौतें नहीं हैं, बल्कि संबंधित उन सभी परिवारों को नाश भी है।
एनएसएस स्कूलों, कॉलेजों और विभिन्न समुदायों के बीच गतिविधियों की एक श्रृंखला आयोजित करने की योजना बना रहा है ताकि तंबाकू के नुकसान के बारे में जागरूकता पैदा की जा सके। गंगाभूषण ने कहा, अगस्त 2018 से कई एनएसएस इकाइयों ने सैकड़ों छात्रों को तंबाकू का उपयोग नहीं करने का संकल्प दिलाया है। उन्होंने कहा कि एनएसएस के स्वयंसेवकों ने नुक्कड़ नाटक, पोस्टर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया और विक्रेताओं को स्कूलों के पास तंबाकू उत्पादों की बिक्री नहीं करने के लिए प्रेरित किया।
एसएचएफ के ट्रस्टी संजय सेठ ने कहा “तंबाकू की महामारी फिर से लौटने बीमारी वाली है। एनएसएस स्वयंसेवक युवा शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो एक बार जागृत होकर समाज को बदल सकते हैं। इतना ही नहीं इस तरह के अभियानों से स्वयंसेवकों को तंबाकू का उपयोग करने से बचना होगा, वे उन समुदायों के तम्बाकू उपयोग के प्रति धारणा को बदल सकते हैं जिनके बीच वे लोग काम करते हैं।
कचार कैंसर अस्पताल के निदेशक और असम में वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) के नेता डॉ. रवि कनन ने तंबाकू के नुकसानके बारे में कार्यशाला में कहा कि हमारे अस्पताल में आने वाले ज्यादातर मरीज तंबाकू सेवन के कारण विभिनन रोगों के शिकार होते हैं। दुर्भाग्य से वे तब आते हैं जब उनका कैंसर अंतिम चरण में होता है। इसलिए उनके बचने की संभावना कम होती है। उन्होंने कहा कि एनएसएस द्वारा शुरू किए रोकथाम अभियानों से तंबाकू के उपयोग से लाखों लोगों की जान बच सकती है।
उन्होंने यह भी कहा कि वॉयस ऑफ टोबैको विक्टिम्स (वीओटीवी) देश भर में डॉक्टरों द्वारा पीड़ितों की पीड़ा और पीड़ितों की स्थिति को नीति निर्माताओं और लोगों के ध्यान लाने के लिए चलाया गया एक अभियान है। वीओटीवी ने भारत में तंबाकू के सेवन के प्रचलन को कम करने में मदद की है।
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे (जीएटीएस), 2017 के अनुसार असम में 48.2 प्रतिशत लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। इसमें 13.2 प्रतिशत लोग धूम्रपान (सिगरेट और बीड़ी) करते हैं। धुआंरहित तम्बाकू (ताम्बुल, गुटका, आदि) का उपयोग 41.7 प्रतिशत लोग करते है। गौरतलब है कि वर्ष 2011-17 के दौरान भारत में तंबाकू के उपयोग में 6 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि असम में इसका उपयोग बढ़ गया है। नतीजतन राज्य में कैंसर की दर खतरनाक अनुपात तक पहुंच रही है।