सरहद पार भी
सड़क है..,
उस सड़क पर
उधर भी छात्र
हैं इधर भी
छात्र हैं
पर,फ़ैज़ तो
एक हैं न वो
हिंदोस्ताँ हैं
न पाकिस्ताँ
हैं सरहद के
उस पार भी
सड़क है इस
पार भी सड़क
है..,सब ताज
उछाले जायेंगे
सब तख़्त गिराये
जायेंगे फ़ैज़ के
बाद भी दुनिया
है के,सरहद न
बाँध सकी उन्हें
जो विचार थे
वो,फ़ैज़ थे
ताज का दस्तुर
तब भी था आज
भी है गर,होश
गुम है तो
हम देखेंगे
सत्ता का नशा
है उन संग हम
झूमेंगे
“पर,जाने कब
उतरेगा कैसे उतरेगा
नशा उनका..?”
पर,हम देखेंगे
देर हुई नहीं
निहत्थे हैं
आग उगलती
उनकी बोली
सीने को चीरती
उनकी गोली..,
डटे हैं के,हम
विद्यार्थी हैं
न मुस्लिम न
हम हिन्दू हैं
हम देखेंगे,
अक्षरो को
पढ़ते हैं विचार
नये गढ़ते हैं
शब्द फ़ैज़ हैं
पर,हम देखेंगे
वो पाकिस्ताँ
हिंदोस्ताँ क्या..?
सिर उठाने की
वजहें कई हैं
सिर मुँड़ाने की
वजह भी है
पर,हम देखेंगे..,
अपने हक़ की
ख़ातिर आवाज़
हम बनेंगे गुनाहों
को राष्ट्र का
कलंक बनने से
हम रोकेंगे
हम देश एक
नया गढ़ेंगे
सरहद के पार
भी सड़क है
फ़ासले हम
तोड़ेंगे कभी
फ़ैज़ भी हिंद
के थे
वो धरा जिसकी
लकीरों के इस
ओर हम हैं
उस ओर फ़ैज़
हैं सरहद वो
हम तोड़ेंगे
सब ताज उछाले
जायेंगे सब तख़्त
गिराये जायेंगे
तब,हम देखेंगे
इंसा इंसा में
होते बँटवारे को
हम रोकेंगे..,
नितिन राजीव सिन्हा