तुम केवल अक्षरों की
पहचान को ही
पढ़ने का नाम देते हो
मगर मैं उसके परे भी
पढ़ पाती हूं बहुत कुछ
किसी की मुस्कुराहट के पीछे
छुपा हुआ दर्द
किसी के अपनेपन के पीछे
छुपा हुआ ज़हर
किसी के बहानो के पीछे
छुपा हुआ झूठ
हां यह भी पढ़ पाती हूं मै
कि मुझे मूल्यों का
पाठ पढ़ाने वाले
खुद कितने मूल्य सहेजते है
तुम तो आज भी
अक्षरों की पहचान को
पढ़ने का नाम देते हो
- शिवांगी पुरोहित