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मकर संक्रांति मनाबो, मकर संक्रांति विशेष--

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देवेन्द्र कुमार साहू

 

तिल गुड़ के लाड़ू ला , मया बाँध के खाबो ।

आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।।

दक्षिण में हे सूरज हा , उत्तर में  अब जाही ।

पूस के जाड़ा अब्बड़ हाबे , वहू अब भगाही ।।

आनी बानी रंग रंग के,  पतंग घलो उड़ाबो ।

आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।।

सुत उठ के बिहनिया ले , नदियाँ नहाय बर जाबो ।

दीन दुखी ला दान करके , देवता दर्शन पाबो ।।

मकर रेखा में जाही सूरज  , दिन हा बाढ़त जाही ।

आवत हावय पूस पुन्नी हा , छेरछेरा घलो ह आही ।।

तिल गुड़ के बंधना कस , सबो समाज बंधाबो ।

आवव संगी जुर मिल के , मकर संक्रांति मनाबो ।।

 

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