नितिन राजीव सिन्हा
निर्भया..,
मैं नारी हूँ
कोमल हूँ
आनंद की
अनुभूति हूँ
कहीं पुत्र
के सिर का
आँचल हूँ
कहीं आँचल
में पनपता प्रेम
का गागर हूँ
मैं कोमल
नारी हूँ..,
मैं नारी हूँ
मेरे आँचल
में चाँद
उतर आता है
हौले से
आलिंगन बद्ध
हो,मुझमें प्रेम
की धारा प्रवाहित
कर जाता है..,
मुझे पल्लवित
कर जाता है
कली सी हूँ
मुझमें खिल
उठने का
उत्साह भर
जाता है..,
नारी हूँ
पर कोमल
हूँ सदियों से
घूँघट में छुपी
हूँ गर,घूँघट
की सीमाओं
को लांघा है
वर्जनाओं को
तोड़ा है तो
निर्भया हूँ
सरे राह लुटती
अस्मत,छूटती
रूह की पहचान
मैं कोमल नारी हूँ..,
काठ में क़ैद
इक सुंदर नारी
हूँ आसमाँ से
उतरे हुए गिद्ध
की ज़िद पर
अपनी आँखों
से निरीह आसमाँ
को ताकती
आँचल फैलाये
इठलाती नदी
का वेग हूँ
बलखाती इतराती
मैं,कोमल नारी हूँ..,
काठ की हाँड़ी
हूँ यही
मेरी पहचान है
एक बार आग
पर चढ़ी तो
धुआँ बनना
मेरी नियति
हैं क्योंकि
मैं निर्भया हूँ
के,मैं कोमल
नारी हूँ..,
नितिन राजीव सिन्हा