जो डरते हैं
शांति से हो रहे
जनविरोधो से
जो डरते है
जनता की एकजुटता से
जो डरते हैं
बंदुकधारियों के खिलाफ
उछले पत्थरों से
वे ही कराते हैं हमला
ताकि डर का
आकलन कर सके
किस हद तक
उनका डर सही है।।
जब वे जाल बुनते हैं
नये नियम बनाते है
अपने और अपने
आका के स्वार्थ में
पर उनकी
नियमों के नाम पर
मनमानियों को मिलती है
चौतरफा चुनौती,
बौखलाकर वे
वर्दीधारियो का
लेते हैं सहारा
और जब वह भी
हो जाता है बेकार
विरोध सड़कों पर
बैठा होता हैं
तो लेते हैं सहारा
गुंडो का।।
फिर ये गुंडे कोहराम मचाते है
और बहुत जद्दोजहद करते हैं
कि खौफ का माहौल बना सके
कि दब जाए डर से आवाजें
पर उनका यह प्लान
हो जाता है धाराशाही
जब लोगों में डर नहीं
गुस्सा पनपता है
और वे जख्म खाकर भी
कोने में दुबकते नहीं
बल्कि
अपनी दूनी संख्या में
उतर आते हैं सड़कों पर
उन्हें चुनौती देने।।
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इलिका