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दिसम्बर आते ही नववर्ष की खुशबू से महक रहे हैं जिले के पर्यटन स्थल प्रख्यात स्थलों के साथ कई छुपे पर्यटन स्थल समायें हैं सूरजपुर धरती की गोद में

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शमरोज खान सूरजपुर जिला

सूरजपुर 06 दिसम्बर 2019/सूरजपुर जिले की धरती प्राकृतिक सौदन्र्य से सराबोर है। यहाॅ पर्यटन के ऐसे स्थान मौजूद हैं जो दूर-दूर से पर्यटकों को यहाॅ आने पर मजबूर करते हैं। जिले में कई ऐसे स्थल हैं जो काफी समय से पर्यटन हेतु प्रख्यात रहें हैं, जबकि सूरजपुर की गोद में कई ऐसे स्थान समायें हुए हैं, जो प्राकृतिक सौन्दर्य से लवरेज हैं। पिछले कुछ समय से स्थानीय लोगों के माध्यम से पर्यटकों का ध्यान इस ओर भी आर्कषित हुआ है। प्रख्यात स्थानो में कुदरगढ़ देवी धाम, सारासोर, कुमेली घाट, बांक घाट, रकसगण्डा जलप्रपात तो हैं ही कुछ नये स्थान जैसे ओड़गी विकासखंड का लफरी घाट, भैयाथान विकासखंड में झनखा और प्रेमनगर विकासखंड में सरसताल ऐसी जगहें हैं जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए लोकप्रिय होते जा रहे हैं। 

कुदरगढ़ देवी धाम- सूरजपुर तहसील के भैयाथान, ओड़गी विकासखण्ड मुख्यालय से लगभग 20 किमी की दूरी पर एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल है - ‘‘कुदरगढ़ ’’। यहां एक प्राचीन किला भग्नावशेष रूप से अपनी प्राचीनता की कहानी अपने गर्भ में छिपाये मौन खड़ा है, यहां भग्नावशेष खण्डित रूप में पड़ी देव एवं शक्ति की आकृतियां प्राचीन कलाशिल्प पर प्रकाश डालती है। कुदरगढ़ की लगभग 2000 फीट की ऊंची पहाड़ी पर एक देवी मूर्ति है। जिसे कुदरगढ़ी देवी नाम से जाना जाता है। देवी मूर्ति कुदरती होने के कारण यह देवी कुदरगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है। आदिकाल में इस देवी को बनवासी लोग आदिशक्ति वन देवी के नाम से पूजा करते थे, किन्तु यह देवी आज सवर्णो की भी पूज्य एवं मान्य है। यह कुदरती देवी इस अंचल के आदिवासियों की शक्ति उपासना की प्रमुख देवी है। कुदरगढ़ी देवी को ‘‘बागेश्वरी देवी’’ के नाम से भी पुकारा जाता है, ये कुदरगढ़ी देवी वाणी की देवी सरस्वती की अवतार मानी जाती है, मैहर की शारदा देवी की जो महत्ता प्राप्त है, वहीं महत्ता इस क्षेत्र में कुदरगढ़ी देवी की है।

सारासोर-   भैयाथान विकाखंड रोड पर 15 किलोमीटर की दूरी पर महान नदी के तट पर सारासौर नामक स्थान हैं। यहाँ महान नदी की निर्मल जलधारा दो पहाड़ियों को चीरते हुए बहती है तथा इस स्थान पर हिन्दुओं का धार्मिक स्थल भी है। सारासोर जलकुण्ड है, यहाँ महान नदी खरात एवं बड़का पर्वत को चीरती हुई पूर्व दिशा में प्रवाहित होती है। 

पौराणिक महत्व - किंवदन्ति है कि पूर्व काल में खरात एवं बड़का पर्वत दोनों आपस में जुड़े हुए थे। राम वन गमन के समय राम-लक्ष्मण एवं सीता जी यहाँ आये थे तब पर्वत के उस पार यहाँ ठहरे थे। पर्वत में एक गुफा है जिसे जोगी महाराज की गुफा कहा जाता है। सारासोर के पार सरा नामक राक्षस ने उत्पात मचाया था तब उनके संहार करने के लिये रामचंद्रजी के बाण के प्रहार से ये पर्वत अलग हो गए और उस पार जाकर उस सरा नामक राक्षस का संहार किया था। तब से इस स्थान का नाम सारासोर पड़ गया। सारासोर में दो पर्वतों के मध्य से अलग होकर उनका हिस्सा स्वागत द्वार के रूप में विद्यमान है। नीचे के हिस्से में नदी कुण्डनुमा आकृति में काफी गहरी है इसे सीताकुण्ड कहा जाता है। सीताकुण्ड में सीताजी ने स्नान किया था और कुछ समय यहाँ व्यतीत कर नदी मार्ग से पहाड़ के उस पार गये थे। आगे महान नदी ग्राम ओडगी के पास रेण नदी से संगम करती है। दोनो पर्वतों की कटी हुई चट्टाने इस तरह से दिखाई देती हैं जैसे किसी ने नदी को इस दिशा में प्रवाहित करने के लिए श्रम पूर्वक पर्वत को काटा हो। वर्तमान में नदी बीच की छोटी पहाड़ी पर मंदिर बना हुआ है। यहाँ कुछ साधू पर्णकुटी बना कर निवास करते हैं और वे भी मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। इस स्थान पर श्रद्धालुओं का सतत प्रवास रहता है। इस सुरम्य स्थल पर पहुंचने के बाद यहाँ एक-दो दिन नदी के तीर पर ठहरने का मन करता है। यहाँ मंदिर समिति द्वारा निर्मित यात्री निवास भी हैं। जहाँ समिति की आज्ञा से रात्रि निवास किया जा सकता है।

कुमेली घाट- सूरजपुर जिले के रामानुजनगर विकासखंड के ग्राम में स्थित कुमेली घाट जलप्रपात पर्यटन हेतु जिला मुख्यालय से सबसे निकट का क्षेत्र है, मुख्यालय से महज 20 कि.मी. की दूरी पर स्थित है प्रकति का यह सुंदर रूप प्रकट करता झरना। यहाॅ जाते ही झरने की खल-खल करती आवाज मनमोह लेने में पर्याप्त हैं, प्रशासन ने भी पर्यटन को दृष्टिगत रखते हुए यहाॅ झरने तक जाने के लिए सीढ़ियाॅ तथा 35 फिट उॅचा मचान भी बनाया है, जिसमें चढ़कर पर्यटक पूरे क्षेत्र का आनंद ले सकते हैं। यहाॅ शिव जी का पुराना मंदिर भी स्थित है स्थानीय लोग मंदिर में पूजा करने व शिवरात्री के समय जल चढाने भी भीड़ होती है।

रकसगण्डा- ओड़गी विकासखण्ड में बिहारपुर ग्राम के निकट बलंगी नामक स्थान के समीप रिहंद नदी (रेड नदी) पर्वत श्रृंखला की उंचाई से गिरकर रकसगण्डा जल प्रताप का निर्माण करती है। जिससे वहां एक संकरे कुण्ड का निर्माण होता है, रकसगण्डा की पहचान छत्तीसगढ के सबसे गहरे जलप्रपात के रूप में है। छत्तीसगढ़ के साथ ही अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश से भी सेैलानी यहाॅ प्राकृतिक सौदन्र्य के नजारे बटोरने हर वर्ष पहुॅचते हैं। 

झनखा घाट - भैयाथान विकाखंड मुख्यालय से महज 4 कि0 मी0 दूरी पर रिहंद नदी पर स्थित झनखा नामक घाट प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ ही साथ सुरक्षित स्थान भी है, स्थानिय लोगों में यह स्थान काफी प्रिय है। यहाॅ लोग बच्चों के साथ आना काफी पंसद करते हैं क्योंकि यह स्थान मुख्यालय से काफी समीप होने के साथ ही सुरक्षित भी है। 

सरसताल - सूरजपुर जिले के प्रेमनगर विकासखंड के ग्राम सरसताल का खुबसुरती मानो हर वर्ष यहाॅ लोगो को दुगनी संख्या में आने पर मजबुर करती है, अपने खुबसूरत नाम के साथ ही यह स्थान प्राकृतिक सुन्दरता से लवरेज है। सूरजपुर जिला मुख्यालय से 60 कि0मी0 की दुरी पर स्थित हसदेव नदी का यह घाट अपनी बड़ी बड़ी चट्टानों के लिए काफी लोकप्रिय है। शाम की किरणें जब यहाॅ पानी पर पड़ती है, और आस-पास की पहाड़ी मानों सपनों की दुनिया सी लगती है। नववर्ष का आनंद लेने के लिए यह स्थान बहुत ही उत्तम है, यहाॅ जाने पर आप जरूर कहेंगें की सूरजपुर जिले में प्रकृति के नायाब नजारें छिपे हैं। 

लफरी घाट - ओडगी विकासखंड के टमकी ग्राम के समीप रिहंद नदी का यह घाट अपनी पहाड़ीयों के कारण पर्यटकों का प्रिय स्थान है, नववर्ष में लोगों की काफी भीड़ इस स्थान पर देखी जा सकती है। यहाॅ का नजारा मानों किसी का भी मन मोह लें। नदी की धारा ढाल की ओर बहने के कारण छोटे जलप्रपात सा चित्रण करती है जिससे यहाॅ की खुबसुरती और भी बढ़ जाती है। अगर आप नववर्ष मनाने को कोई नया स्थान खोज रहें हैं तो सूरजपुर के ओड़गी का यह घाट सबसे अच्छी जगह है।

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