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आदिवासियों और वनाधिकारों के मुद्दों पर आंदोलन जारी रहेगा -- किसान सभा

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छत्तीसगढ़ किसान सभा (सीजीकेएस) ने केंद्र सरकार द्वारा वन कानून में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लिए जाने की घोषणा का स्वागत किया है, लेकिन इसे अपर्याप्त बताते हुए इस संबंध में तुरंत नोटिफिकेशन जारी करने की मांग की है।

आज यहां जारी एक बयान में किसान सभा ने इसे किसानों और आदिवासी संगठनों द्वारा इन संशोधनों के खिलाफ चलाये गए देशव्यापी आंदोलन की जीत बताया है और कहा है कि आरसेप व्यापार समझौते से पीछे हटने के बाद यह दूसरा मौका है कि भाजपा सरकार को अपने पैर पीछे खींचने पड़े हैं।

छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते और महासचिव ऋषि गुप्ता* ने रेखांकित किया है कि इन प्रस्तावित संशोधनों में वन अधिकारियों को आदिवासियों के दमन -- गैर-जिम्मेदाराना तरीके से उन्हें गिरफ्तार करने, छापा मारने, जब्ती बनाने और हत्या तक करने -- का असीमित अधिकार दिया जा रहा था और सबूत का भार भी पीड़ितों पर ही डाला जा रहा था। इन संशोधनों के पारित होने के बाद वनाधिकार कानून पूरी तरह से निष्प्रभावी हो जाता।

किसान सभा नेताओं ने केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री द्वारा इन प्रस्तावित संशोधनों को केवल "प्रारूप" कहने की भी कड़ी निंदा की है तथा इसे देश को गुमराह करने वाला बयान बताया है। वास्तविकता यह है कि 7 मार्च को राज्य सरकारों को जारी एक पत्र में साफ कहा गया था कि ये संशोधन कानून बनाने के उद्देश्य से प्रस्तावित किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि आदिवासियों के साथ जारी 'ऐतिहासिक अन्याय' के साथ जुड़े मुद्दों पर जो देशव्यापी आंदोलन चल रहा है, उसकी कड़ी में 21 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गए आदिवासियों की बेदखली के आदेश के खिलाफ दिल्ली में जबरदस्त प्रदर्शन किया जाएगा।

 

 

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