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मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने पक्षपात व भेदभाव में धृतराष्ट्र, गांधारी,भीष्मपितामह को भी पीछे छोड़ दिया,

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संक्षिप्त टीका-126
विश्व का आठवां अजूबा मध्यप्रदेश के उच्च न्यायालय ने पक्षपात व भेदभाव में धृतराष्ट्र, गांधारी, भीष्मपितामह को भी पीछे छोड़
दिया

प्रदेश के न्याय के ठेकेदार न्यायाधिपतियो
की कथनी व करनी में अंतर।

कहने को तो कहते है कि न्याय होना चाहिये, शोषित को न्याय मिलना चाहिये, अपराधियों को दंड मिलना चाहिये, किन्तु अपराधियों को बचाने का कार्य खुले रूप से प्रदेश के कटिपय न्यायाधिपतियो द्वारा किया जा रहा है। वर्तमान में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के संबंध में यह सब बातें किताबी होती जा रही है, इन सबका श्रेय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य व कटिपय अन्य भ्रष्ट न्यायाधिपतियो को जाता है।
एक छोटा सा उदाहरण जिसे सामान्य व्यक्ति भी समझ सकता है किन्तु म.प्र. उच्च न्यायालय के कटिपय भ्रष्ट न्यायाधिपतियो को समझ में नही आ रही है, उक्त न्यायाधिपतियो को मोतियाबिंद की बीमारी न होने के बावजूद व सब कुछ खुला प्रत्यक्ष नग्न आखो से दिखाई देने के बाद भी गोबर का भक्षण कर रहे है साथ ही कह भी रहे है कि यह तो रवे का हलवा है व बड़े चाव से उसे खाकर हजम भी कर रहे है, क्योकि भ्रष्टाचार करते करते हाजमा भी भ्रष्टाचार का हो गया है। ऐसी विचित्र सोच पर बड़ी हँसी आती है।
आप देखिए व सोचिये कि एक आईएएस, आईपीएस में यदि कोई व्यक्ति चयनित होकर पदभार ग्रहण कर लेता है, पश्चातवर्ती प्रक्रम पर जांच के दौरान पाया जाता है कि चयनित अभ्यर्थी की डिग्री फर्जी थी तो उसे तुरन्त पद से अयोग्य घोषित कर हटा दिया जाता है व उसके खिलाफ 420, 467, 468, 471 भा. द.वि. का मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया जावेगा, क्योकि उसकी नियुक्ति प्रारम्भतः शून्य है।
इसी तरह देखा जावे तो व्यापम के छात्रों का क्या दोष था जो उनके विरुद्ध फौजदारी प्रकरण दर्ज किये गए उनकी भी डिग्री को बाद में दुबारा परीक्षा लेकर वैध कर देंना चाहिए थी, ऐसा पक्षपात आखिर क्यों?
दूसरी और म.प्र. उच्च न्यायालय में निश्चित रूप से अपुष्ट जानकारी अनुसार लगभग 10 न्यायाधीश वर्तमान में ऐसे कार्यरत है, जिनकी डिग्री फर्जी अथवा नियमानुसार एलएलबी पास नही की है, और वे जज के पद पर विराजमान होकर अयोग्य होने के बावजूद जनता के अधिकारों का निर्धारण कर रहे है, और प्रदेश की उच्च न्यायालय के मुख्य व कटिपय अन्य भ्रष्ट न्यायाधिपति उनको बचाकर उनके विरुद्ध निलंबन अथवा अन्य कोई कार्यवाही करने तथा फौजदारी मुकदमा दर्ज करने के बजाय उनकी डिग्रियों को वैध करने में जुटे हुए, क्या ऐसे भ्रष्ट न्यायाधिपति जिनके मन मस्तिष्क में भ्रष्टाचार कंठ कंठ तक व्याप्त है, वे लोगो को शुद्ध रूप से न्याय प्रदान करेंगे, ऐसे भ्रष्ट न्यायाधिपतियो ने बेशर्मी की चादर के बजाय रजाई गद्दे ओढ़ रखे है।
जैसे ही त्वरित रूप से उक्त फर्जी डिग्री वाले न्यायाधीशों की सूची प्राप्त होती है अविलंब प्रकाशित की जावेगी, इंतजार कीजिये......?

जय हिंद, जय भारत
राजेन्द्र कुमार श्रीवास
जबरन सेवानिवृत्त अपर जिला न्यायाधीश
नीमच,40 जावरा रोड़ रतलाम

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