डॉ सीमा विजयवर्गीय
जग के माथे का है टीका शान है मेरा वतन,
क्या कहूँ मैं ख़ुद ये इक गुणगान है मेरा वतन।
मीर ,ग़ालिब ,फ़ैज़ का अरमान है मेरा वतन,
सूर तुलसी जायसी रसखान है मेरा वतन।
ये शिवा का ओज है साँगा के दिल की है तड़प ,
माँ के आँचल पर सदा क़ुर्बान है मेरा वतन।
कुंज गलियों के नज़ारे अब भी दिल में हैं बसे,
मुरली की इक तान बिन बेजान है मेरा वतन।
ईद का भी चाँद देखे दोज का भी चाँद ये,
होली दीवाली भी क्या रमज़ान है मेरा वतन।
प्रेम का दीपक लिए सारे जहाँ में घूमता,
सबके दिल में जो बसा सम्मान है मेरा वतन।
ज़र्रे-ज़र्रे में दया रग-रग में इसके प्यार है,
सच तो ये ही है मेरी जान है मेरा वतन।
डॉ सीमा विजयवर्गीय