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नियम विरुद्ध ढंग से प्रस्तावित महावीर कोल वाशरी की जनसुनवाई निरस्त किये जाने की मांग जनचेतना के राजेश त्रिपाठी ने कलेक्टर रायगढ़ को पत्र लिखा

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"नितिन सिन्हा की रिपोर्ट"

रायगढ़:-जिले में लगातार बिगड़ते पर्यावरण के बीच निजी कम्पनियों की अवैधानिक जनसुनवाई का दौर जारी है। इसके उलट जिन क्षेत्रों में इन कम्पनियों की जनसुनवाई होनी है,वहां के ग्रामीण और जिले के ऐक्टिविस्ट कड़ा विरोध दर्ज करवा रहे है।
इस क्रम में जनचेतना के सदस्य और अंचल के ख्यातिलब्द समाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी ने कलेक्टर रायगढ़ को पत्र लिखकर दिनांक 10 जुलाई 2019 को टेड़ा नवापारा में प्रस्तावित महावीर कोलवाशरी की जनसुनवाई को निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने कलेक्टर रायगढ़ को लिखे अपने पत्र में महावीर कोल वाशरी की प्रस्तावित जनसुनवाई को निरस्त किये जाने के तमाम वैध कारण भी बताए हैं। उनके बताये अनुसार महावीर कोल वाशरी की असफल जनसुनवाई पूर्व में दिनांक 16/जनवरी 2018 को हो चुकी है। जिसे बिना उचित कारण के ही जिला प्रशासन ने कम्पनी प्रबन्धन की सुविधानुसार स्थगित कर दिया था। जबकि जनसुनवाई स्थगन करने के लिए E I A अधिसूचना 2006 के अपेंडिक्स 4 की धारा 3.3 के
अनुसार एक बार जनसुनवाई के तारीख की घोषणा हो जाने के बाद किसी भी दशा में जनसुनवाई को अगली तारीख के लिए तब तक टाला नही जा सकता हैं, जब तक कोई बड़ा या प्रतिकूल आपातकालीन कारण सामने न आ जाता हो। इस लिहाज से 16 जनवरी 2018 को ऐसी कोई प्रतिकूल परिस्थितियां निर्मित ही नही हुई थी, जिसके कारण जनसुनवाई को स्थगित किया गया था।। उक्त जनसुनवाई में केंद्र सरकार के द्वारा जारी E.A.I. अधिसूचना के घोर उलंघन किया गया था।। जबकि E I A अधिसूचना 2006 के अपेंडिक्स 4 की धारा 3.2 के अनुसार आवेदक कम्पनी के द्वारा जनसुनवाई के लिए दिए गए आवेदन प्राप्ति दिवस से सात दिनों के भीतर जनसुनवाई का स्थल,तिथी और समय का निर्धारण करता है। जबकि विगत कुछ वर्षों से राज्य मंडल ने अपने अधिकारो का दुरुपयोग करते हुए यह अधिकार भी अवैधानिक रूप से क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी रायगढ़ को स्थानांतरित कर दिया है। ऐसा किया जाना नियम विरुद्ध प्रक्रिया है।

इधर राजेश त्रिपाठी कहते है कि ई आई ए की अधिसूचना 2006 की अपेंडिक्स 4 की धारा 7.2 के अंतर्गत आवेदक कम्पनी के द्वारा जनसुनवाई के लिए दिए गए आवेदन प्राप्ति की तिथी के 45 दिनों के भीतर जनसुनवाई हो ही जानी चाहिए। जबकि महाजेंको के द्वारा जनसुनवाई का आवेदन 15 दिसम्बर 2016 को ही मंडल को प्राप्त हो गई थी,इसके बाद यह आवश्यक था कि जनसुनवाई किसी भी हाल में 31 जनवरी 2017 तक करवा दी जानी चाहिए थी। परन्तु निर्धारित नियमो की घोर अवहेलना करते हुए महाजेंको की जनसुनवाई लगभग 12 महीनों बाद 16 जनवरी 2018 को रखी गई,जो किसी भी तरह से *विधि-सम्मत* नही थी। ऐसे मामलों में जब कि 45 दिनों में कम्पनी की जनसुनवाई सम्पन्न न कराई गई हो तो राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल का अधिकार स्वतः खत्म हो जाता है,अधिनियम के अनुसार फिर कम्पनी की प्रस्तावित जनसुनवाई की जिम्मेदारी केंद्र सरकार में हांथों में आ जाती है। फिर भी नियम विरुद्ध ढंग से छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल आगामी 10 जुलाई 2019 को महावीर कोल वाशरी की विवादित जनसुनवाई को नियम विरुद्ध ढंग से करवाने जा रही है। जबकि इस प्रस्तावित जनसुनवाई को आयोजित किये जाने का अधिकार राज्य मंडल को है ही नही। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि किसी भी कारण वश कम्पनी की सम्बन्धित जनसुनवाई स्थगित होती है तो उसके कारण सहित निरस्त होने की सूचना समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाना भी अधिनियम 2006 के तहत जरूरी होता है। किंतु छ ग राज्य पर्यावरण मंडल दोनो कम्पनियों की जनसुनवाई के स्थगन की सूचना किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नही करवाया। यह कृत्य अधिसूचना 2006 के नियमों का खुला उलंघन था। वही आगामी तिथी में महावीर कोलवाशरी की जमसुनवाई निरस्त किये जाने के लिहाज से एक बड़ा महत्वपूर्ण तथ्य है कि छतीसगढ़ मिनरल माइनिंग ट्रांसपोटेशन एंड स्टोरेज रूल्स 2009 के अनुसार किसी भी कोयला खदान क्षेत्र के 25 किमी दायरे में कोयले का भंडारण नही किया जा सकता है। जबकि प्रस्तावित महावीर कोल वाशरी एस सी सी एल की छाल कोयला खदान से महज 12 किमी की दूरी पर अवैधानिक रूप से स्थापित होना है। इस कारण से महावीर कोल वाशरी टेंडा नवापारा की प्रस्तावित जनसुनवाई राज्य सरकार के निर्धारित नियमों से भी पूर्णतः विरुद्ध है। अतः इन महत्वपूर्ण कारणों को ध्यान में रखकर कलेक्टर रायगढ़ के द्वारा महाबीर कोल वाशरी की अवैधानिक जनसुनवाई 10 जुलाई 2019 को स्थगित कर देना चाहिए। कलेक्टर रायगढ़ अगर स्थगन का निर्णय लेते है,तो यह पूरी तरह से जनहित में और विधी का सम्मान करने वाला फैसला होगा।

क्या कहते है एक्टिविष्ट-

आप कल्पना कर सकते हैं कि एक आम आदमी के लिए शासन द्वारा स्थापित नियमो का पालन करना कितना जरूरी होता है। जबकि निजी कम्पनियों के द्वारा न केवल राज्य शासन बल्कि केंद्र सरकार के द्वारा बनाये गए कड़े और आवश्यक पर्यावरणीय नियमों का खुला उलंघन किया जाता रहा है,और सबसे दुःखद स्थिति तब होती है,जब आप हम देखते है कि स्थानीय प्रशासन उन पर प्रतिबंध लगाने के बजाए उन्हें नियम कायदों को तोड़ने में सहयोग प्रदान करता है। इस तरह महाबीर कोल वाशरी की प्रस्तावित जनसुनवाई महाजेंको की तरह फ़र्ज़ी और विधी विरुद्ध है। हमने कलेक्टर रायगढ़ से इस जनसुनवाई को निरस्त करने की मांग की है। निर्णय उन्हें लेंना है,यद्यपि जनचेतना जिले के पर्यावरण के विनाश और संविधान के द्वारा स्थापित नियमों का उलंघन करने वाले हर पूंजीवादी संस्थाओं(कम्पनियों) के विरुद्ध संघर्षरत रहने के लिए प्रतिबद्ध है। हम हर बार की तरह इस बार भी नियम विरुद्ध ढंग से की जाने वाली प्रस्तावित जनसुनवाई के विरुद्ध न्यायालयीन प्रक्रियाओं को अपनाने में कोई कोर कसर नही छोड़ेंगे: -राजेश त्रिपाठी जनचेतना रायगढ़ छ ग

पर्यावर्णीय नियमों की अंदेखियाँ करके निजी कंपनियों को लाभ दिलाने के लिहाज से इस तरह की फ़र्ज़ी जनसुनवाईओं का विरोध जनचेतना प्रारम्भ से ही करती रही है। एक महिला समाजिक कार्यकर्ता होने के नाते मैंने पाया है, कि पर्यावरण के बिगड़ते स्वरूप का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव महिलाओं और बच्चों में पड़ता है। दूसरी सबसे बड़ी बात आप उस प्रतिबंधित वन क्षेत्र में जनसुनवाई कैसे प्रायोजित कर सकते है जो रिजर्व फारेस्ट का हांथी प्रभावित क्षेत्र घोषित है:-सविता रथ जनचेतना रायगढ़

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