निरंजन मोहन्ती
नारायणपुर ;- दीपावली के दुसरे दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है इसे अन्न कूट के नाम से भी जाना जाता है ,इस त्यौहार को हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है |इस पर्व में मानव और प्रकृति का सीधा सम्बन्ध माना गया है गोवर्धन यानी गायों की पूजा की जाती है,गाय को गंगा की तरह पवित्र एवं लक्ष्मी के रूप में माना जाता है,माता लक्ष्मी जीस तरह सुख समृधि देती है उसी तरह गोऊ माता भी स्वास्थ्य रूपी अमृत लोगों को देती है ,गोऊ से उत्पन्न बछडा किसानो के खेतों में फसल उगाने में सहायता करती है ,गोऊ की पूजा करने के लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को सम्पूर्ण भारत में अपनी रीती रिवाज से लोग पूजा करते हैं|
गोवर्धन पूजा को लेकर एक कथा प्रचलित है की इन्द्रदेव को अंहकार हो गया था ब्रजवासी मिलकर इन्द्रदेव की पूजा की तैयारी करके पकवान बनाया जा रहा था कृष्ण के पूछने पर ब्रजवासीयों ने कहा की हम इन्द्र की पूजा के लिए कर रहें क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करके हम्हारे खेतों में लगी फसलों की पैदावार होती है,जिससे हम्हारे गायों को चारा मिलती है जिस पर श्री क्रष्ण ने कहा की तब तो हमे गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि गायों को चारा वन्ही मिलता है जिस पर इन्द्र देव नाराज होकर भारी बारिश की कृष्ण ने अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत को उठा कर ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाया इन्द्र देव का अंहकार चूर हो गया उसी दिन के बाद गोवर्धन की पूजा की जाती है|
गोवर्धन की पूजा भारत देश के प्रत्येक जगहों में लोग अपनी संस्कृति और रीती रिवाज से पूजा करते हैं ग्रामीण क्षेत्रो में आज के दिन घर की महिलाएं द्वारा चावल के आटा घोल से घर के बाहर से अंदर पूजा कमरा तक गाय बैल के खुर के निशान बनाते है।तत्पश्यात गाय बैलों को सर्वप्रथम स्नान कराया जाता है नए रस्सी गल्ले में डाला जाता है फिर हल्दी के घोल को पैरों में छिड़क कर माथे में सिंदूर लगाया जाता है गाय बैल और बछड़ों को माला पहनाकर थाली में दीप सजा कर आरती की जाती है , ग्रामीण क्षेत्रों में गाय माता के लिए पकवान बनाया जाता है जिसे कोहरी कहा जाता है, कोहरी में कई प्रकार के अनाज दाल और सब्जी को मिलाकर बनाया जाता है जिसमे सब्जी में कोंहड़ा (पका हुआ मखना ) का होना आवश्यक है इसके बिना पकवान को खिलाना अधूरा माना जाता है | ग्रामीण क्षेत्रों में यह परम्परा बहुत ही पुरानी है आज भी यह परम्परा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है | इस दिन प्रकृति के आधार मानकर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत आकार बनाकर पूजा की जाती है समाज के रूप में साक्षात गाय की पूजा की जाती है साथ में अन्नकूट की भी पूजा की जाती है |