"नितिन राजीव सिन्हा"
राहुल ने पत्र लिख कर देश को बता दिया है कि झूठ की सत्ता के आगे वे अडिग नही रह सके हैं और देश को खड़ा रखने की जो राजनीतिक ज़िम्मेदारी कांग्रेस की है उसके निर्वहन में वे त्याग को लक्ष्य कर आगे बढ़ रहे हैं ऐसा कर वे अपने पिता स्व.राजीव गांधी की स्थापित परंपरा को ही आगे बढ़ा रहे हैं..,
१९८९ के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नही मिला था उसे १९५ सीटें मिली थी सहयोगियों को मिला कर २१० सीटें थीं पर,जनादेश का सम्मान करते हुए राजीव ने सरकार बनाने से इंकार कर दिया गर,चाहते तो थोड़ी जोड़तोड़ करके सरकार बना सकते थे ध्यान रहे “मोदी शाह इन दिनों जिस पॉवर पैटर्न की नुमाइश,सत्ता हर हाल मे हासिल करने के लिए कर रहे हैं वैसा तब नही किया गया था..,”
राहुल ने देश में राजनीति के बदले हुए मापदंड को सही दिशा में लाने के सराहनीय प्रयास किये हैं इसके दूरगामी परिणाम होगे इससे राजनीति के मूल्य पुनःस्थापित हो सकेंगे सरकार बनाने के लिये और चुनाव जीतने के लिये हद से गुज़र जाने की गुजरात के बनियों की मानसिकता का पर्दाफाश हो सकेगा..,
राहुल ने दक्षिण पंथवाद के देश के संस्थागत ढाँचे पर क़ब्ज़ा ज़मा लेने के सफल प्रयास को चुनाव के नज़रिये से देखते हुए कह दिया है कि चुनाव अब महज़ औपचारिकता रह गये हैं..,
ध्यान रहे वाम चरम पंथ ने बंदूक़ के ज़ोर पर २०५० तक देश की सत्ता पर क़ाबिज़ होने के सपने देखे हैं जो भय केंद्रित सत्ता होगी वहीं दक्षिण पंथ ने दुष्प्रचार और झूठ के मायावी संसार के दम पर भ्रम केंद्रित सत्ता स्थापित कर ली है हमें लगता है कि “भय और भ्रम दोनों ही संवैधानिक ढाँचे को तहस नहस करके रख देते हैं..,”
राहुल के लिये यह करना ज़रूरी है कि वे चरम पंथवाद के दो अनुयायी विचार धारा क्रमशः दक्षिण पंथ और वाम पंथ के भ्रामक पहचान उजागर करें उस का पर्दाफ़ाश करें तभी देश बच पायेगा और वह उग्र राष्ट्रवाद के दक्षिण पंथी मानसिकता और उग्र राष्ट्रनाश वाद के वाम पंथ के भावी ख़तरों का सामना कर पायेगा,दक्षिणपंथ की दुर्दशा सीरिया जैसे कई देश भुगत रहे हैं वहीं वामपंथ का दुस्प्रभाव भारत में बढ़ता ख़ूनी नक्सलवाद है..,
प्रश्न तो यह है कि क्या देश के लोग देश की चिंता से वाक़िफ़ हैं ? या वे प्रायोजित समाचारो की अतिरंजना में बह जाने को आतुर हैं..?
अमित शाह गांधी को चतुर बनिया कहते हैं जबकि नरेंद्र मोदी,शाह में लोहिया के दर्शन प्राप्त करते हैं इस तरह विचारशून्य राजनीति की जड़ता को तोड़ना होगा ताकि लोककेंद्रित लोकतंत्र अदानी जैसे बनियों की देहरी पर सिर झुकाने को मजबूर न हो जाये..,
राहुल के पत्र पर मंथन होना अभी शेष है पर हम अपनी बातों को इन शब्दों के साथ विराम देंगे कि-
समझनें ही नहीं
देती सियासत
हमको
सच्चाई,कभी
चेहरा नही मिलता
कभी दर्पण नहीं
मिलता..हर मोड़
पर सियासी उठा
पटक मिलती है
पर,कहीं कोई
नेता नहीं मिलता..,