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फिर निर्णायक भूमिका में अहमद पटेल : नई दिल्ली से आलोक मोहन का विश्लेषण

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यह कोई पहला अवसर नहीं है जब कांग्रेस में इस तरह का संकट आया है इसके पूर्व में भी इस तरह की कांग्रेश के सामने आती रही है वह दौड़ चाहे आजाद भारत के बाद का समय रहा हो या फिर 1990 के बाद कभी कांग्रेश बटी तो कभी कभी कभी ऐसा लगने लगा कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा आज देश में जितने भी राजनीतिक दल हैं उनमें ज्यादातर राजनीतिक दलों के पूर्व नेता कभी ना कभी कांग्रेस से कभी कांग्रेस से कांग्रेस से से जुड़े रहे हैं कमोवेश राहुल गांधी की इस्तीफे के बाद एक बार फिर ऐसी स्थिति पैदा हो गई है लेकिन बदले हालात में तमाम तरह के सवाल कांग्रेस के नेताओं में की राहुल के बाद पार्टी की कमान किसके हाथ में रहेगी यह सवाल उठना वाजिब भी है वह इसलिए इस्तीफे बाद राहुल गांधी स्वयं यह कह चुके हैं की पार्टी का जो भी भी अगला अध्यक्ष होगा उसका ताल्लुक नेहरू गांधी परिवार से नहीं होगा इससे स्पष्ट है कि फिलहाल तो सोनिया प्रियंका वह राहुल पार्टी की मुखिया बनने के लिए तैयार नहीं होंगे उस स्थिति में पार्टी का वर्तमान में अंतरिम अध्यक्ष किसको बनाया जाए यह अलग पहलू हो सकता है लेकिन वर्किंग कमेटी की बैठक में ही तय हो पाएगा की पार्टी की स्थाई कमान किस को सौंपी सौंपी जाए बदले हालात में एक बार फिर कांग्रेस के कुछ भेजते हैं हैं फिर निर्णायक भूमिका में आ गए आ गए गए आ गए गए हैं जो हमेशा गांधी नेहरू परिवार के परिवार के वफादार रहे हैं इनमें से अहमद पटेल का नाम अहमद पटेल का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है इंडियन जंग को मिली जानकारी के अनुसार वर्तमान कांग्रेस के जो हालात हैं उसमें फिर निर्णायक भूमिका में अहमद पटेल आ गए हैं जो वर्तमान में पार्टी के कोषाध्यक्ष के पद पर तैनात है कहां जा रहा है विदेश प्रवास के पूर्व अहमद पटेल श्रीमती सोनिया गांधी राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी से गहन मंत्रणा की है बता दें की उक्त तीनो लोग व्यक्तिगत मामलों को लेकर विदेश गए हुए हैं इन हालात में पार्टी की सारी जिम्मेदारी एवं भावी अध्यक्ष कौन होगा उसका फैसला लेने का अधिकार कांग्रेस वर्किंग कमेटी के साथ साथ साथ अहमद पटेल को सौंपा गया है चर्चा तो यह भी यह भी है की कोषाध्यक्ष के साथ उन्हें वर्किंग कमेटी की बैठक की बैठक में भावी कांग्रेस अध्यक्ष की कमान भी सौंपी जा सकती है अगर वे किसी कारण वश पार्टी अध्यक्ष की कमान नहीं संभालते हैं तो आमद पटेल जिसको चाहेंगे चाहेंगे वहीं कांग्रेस पार्टी का नया अध्यक्ष होगा इनमें गुलाम नबी आजाद सुशील कुमार शिंदे इसके अलावा कुछ ऐसे नाम भी सतह पर आ सकते हैं जो चर्चा में नहीं है खैर यह तो समय ही बताएगा अगले सप्ताहों में होने वाली सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में क्या क्या क्या तय होता है यहां इस बात का उल्लेख कर देना उचित होगा 90 के बाद से कांग्रेस जब कभी संकट में आई आई तो आमद पटेल ने पर्दे के पीछे रहकर नेहरू गांधी परिवार को ना केवल मजबूती दी बल्कि भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी को भी स्थापित करने में भी अहम भूमिका अदा की यह किसी से छिपा नहीं है कि 2009 के चुनाव परिणाम के बाद यह लगने लगा था कि कांग्रेस सत्ता से काफी दूर हो जाएगी लेकिन इन्हीं अहमद पटेल की वजह से तमाम सामान विचारधारा वाले दलों को एकजुट कर 10 साल तक केंद्र में यूपीए सरकार चलाई डॉ मनमोहन सिंह रहे हैं इसके मुखिया अहमद पटेल भी है जो यदा-कदा उठने वाले विवादों को हमेशा शांत करते रहे हैं यहां इस बात का भी उल्लेख कर देना उचित होगा 2009 में तत्कालीन इस संवाददाता ने एक पत्र लिखा था इसमें कहा गया था कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के नाते बड़प्पन दिखाते हुए छोटे दादा एवं समान विचारधारा वाले लोगों को एकजुट करके गठबंधन की सरकार बनाने का प्रयास करें परिणाम यह हुआ तमाम खींचतान के बाद यूपीए की सरकार का गठन हुआ और डॉ मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने जिस समय मनमोहन सिंह ने ने मनमोहन सिंह ने ने प्रधानमंत्री की कमान संभाली थी उस समय देश की अर्थव्यवस्था डावाडोल थी देश तमाम मुद्दों पर दुनिया से अलग-थलग पड़ता जा रहा था रहा था जा रहा था रहा था सांप्रदायिक शक्तियां उभार पर थी तथा सेकुलर जमात ए कमजोर पड़ रही थी मनमोहन सिंह के आने के बाद आने के बाद के आने के बाद आने के बाद उग्र हिंदुत्व का चेहरा भी उभार पर सामने आया तथा तमाम वे संगठन जो उग्र हिंदुत्व का राग अलाप रहे थे, वे बेनाकाम हुए मक्का मस्जिद तथा मालेगांव के बम धमाके इसी का परिणाम रहे हैं साथ ही दिल्ली के बटला हाउस कांड भी किसी दौर में हुआ था मालेगाव से संबंधित एक मामले में वांछित साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, जिन पर हिंदू आतंकवादी होने का आरोप चस्पा है वे अब पार्लियामेंट की शोभा बढ़ा रही हैं और जब इस तरह का माहौल हो तो स्वभाविक है कांग्रेस की कमान उसी को सौंपी जाएगी जो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के तमाम जनविरोधी नीतियों के खिलाफ लामबंद होकर पूरे देश में एक जन आंदोलन खड़ा कर सकें खड़ा कर सकें खड़ा कर सकें कांग्रेस को फिलहाल एक ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो जनता की कमजोर नब्ज पर हाथ रखने में माहिर हो उसकी अपनी पावर भी हो और सियासत में पावरफुल भी हो जरूरत पड़ी तो कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेता उन तमाम दलों को कांग्रेस में विलय करवा सकते हैं जो किसी समय में कांग्रेस के मजबूत हिस्से रहे हैं इनमें शरद पवार की एनसीपी तथा टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी का भी नाम लिया जा सकता है अंदर खाने में इस तरह की कवायद चल रही है और इस भूमिका में अहमद पटेल बड़ी मजबूत स्थिति में नजर आते हैं क्योंकि उनमें ही यह दमखम है दमखम है है दमखम है है जो पुराने दोस्तों और समान विचारधारा वाले दलों को एक साथ ला सकते हैं हैं सकते हैं ला सकते हैं हैं सकते हैं अब देखना यह होगा यह अपनी किस भूमिका में रहते हैं लेकिन इतना तो निश्चित है वर्तमान में नेहरू गांधी के परिवार के सबसे वफादार ओं में अहमद पटेल अग्रिम पंक्ति में बताए जाते हैं

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