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किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ावा देने वाला बजट : किसान सभा

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छत्तीसगढ़ किसान सभा ने कल संसद में पेश बजट को किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट मुनाफे को बढ़ावा देने वाला बजट बताया है. किसान सभा का मानना है कि सवाल चाहे लाभकारी समर्थन मूल्य का हो या कर्जमुक्ति का, किसानों की आय बढ़ाने का हो या उनको रोजगार देने का; यह बजट उनकी किसी भी समस्या को हल नहीं करता. इस मायने में यह किसानविरोधी बजट है.

आज यहां जारी एक बयान में छग किसान सभा के राज्य महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा कि पिछले पांच सालों में किसानी के काम आने वाली सभी चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ी है, जिससे कृषि लागत बहुत बढ़ी है. हर साल आधा देश प्रायः सूखाग्रस्त रहता है. घाटे का सौदा होने के कारण किसान क़र्ज़ के दलदल में फंसे हुए हैं. फसल बीमा योजना किसानों की जगह, कॉर्पोरेटों की तिजोरी भरने का औजार रह गया है. लेकिन अपने चुनावी वादों के बावजूद भाजपा सरकार ने इस बजट में किसानों को कुछ नहीं दिया है.

उन्होंने कहा कि डीजल-पेट्रोल की कीमत बढ़ने से फसल का लागत मूल्य और बढ़ेगा. कृषि के आधुनिकीकरण के नाम पर कॉर्पोरेट कंपनियों के लिए डेयरी और मत्स्यपालन के दरवाजे खोले जा रहे हैं. सिंचाई सुविधाओं के विस्तार के नाम पर उन इसराइली कंपनियों को बुलाया जा रहा है, जिसका क्रूरता से किसानों के साथ पेश आने और फिलिस्तीनियों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप हैं. इससे देश के किसान और बर्बाद होंगे.

किसान सभा नेता ने आरोप लगाया है कि किसान सहकारिताओं को स्थापित करने के बजाये यह सरकार उत्पादक संगठनों के जरिये ठेका कृषि को बढ़ावा देना चाहती है. उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र के रिटेल में एफडीआई के प्रवेश हमारी खाद्यान्न आत्मनिर्भरता प्रभावित होगी. वास्तव में किसानों की भलाई के नाम पर जितनी भी योजनायें चलाई जा रही है, उसका फायदा केवल बिचौलियों और व्यापारियों ने ही उठाया है.

गुप्ता ने कहा कि बजट में किसानों की आय दुगुनी करने के प्रयासों का कोई जिक्र तक नहीं है. पिछले पांच सालों से किसानों की आय मात्र 0.44% की औसत से बढ़ी है और इस रफ़्तार से उनकी आय को दुगुना होने में 160 साल लग जायेंगे. सूखे में मनरेगा उनके रोजगार का सहारा बन सकता था, लेकिन इस मद में भी पिछले बजट की तुलना में 1000 करोड़ रूपये की कटौती की गई है, जिससे रोजगार उपलब्धता में गिरावट ही आएगी.

किसान सभा ने कहा है कि मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश से अपने हाथ खींच रही है और इसके दुष्परिणामों के खिलाफ किसानों और आम जनता को बड़े पैमाने पर लामबंद किया जाएगा.

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