नितिन राजीव सिन्हा
जिस तरह से क़लम पर कमल खिलाये जा रहे हैं अर्थात धन के प्रभाव में इसे लाया जा रहा है सरकारें अख़बारों पर घोषित अघोषित नियंत्रण मसलन क़ानून बनाकर आस्ट्रेलिया में और विज्ञापन दे कर भारत में स्थापित करना चाह रही हैं अथवा कर रही हैं उसकी ख़िलाफ़त करने का साहस आस्ट्रेलिया के अख़बारों ने अपने २१ अक्टूबर २०१९ के अंक में दिखाया है वहाँ के तमाम अख़बारों ने अपने आज के फ़्रंट पेज काले कर दिये हैं,अपनी सरकार को संदेश दे दिये हैं कि स्याही का रंग काला होता है इस लिये सरकार के काला क़ानून के ख़िलाफ़ लिखने का साहस काला पेज की शक्ल ओ सूरत में सामने आता है..,
उत्पीड़न की दास्ताँ,पत्रकार जीवन की शैली बनती रही है तब भी जबकि गणेश शंकर विद्यार्थी का दौर था और अब भी जबकि अख़बार भारत में कोरपोरेट घरानें चला रहे हैं क़लम उनके इशारे पर चल रही हैं पाठकों के साथ छल कर रही हैं,विज्ञापन वह भी सरकारी इनकी मजबूरी बन चुकी है भारत में अख़बारों की आर्थिक मजबूरियाँ हैं सो वे राग दरबारी बन गई हैं पर,आस्ट्रेलिया में साहस है तो वहाँ सरकार को आईंने दिखाने से पहले आईने पर कलिख पोत दी गई है..,
सरकार विरोधी ख़बरें छापने पर आस्ट्रेलिया में कुछ महीने पहले पुलिस ने एक पत्रकार के घर पर छापे मारे थे तब से वहाँ के सारे अख़बार मिलकर एक अभियान Australia’s right to know चलाये हुए थे उसी क्रम में आज अख़बार काले कर दिये गये..,
१८९० में जयनारायण श्रीवास्तव के पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले प्रतापी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने १९१३ में महज़ २३ वर्ष की उम्र में कानपुर से प्रताप पत्रिका निकालना शुरू किया और ग़रीब,किसान और मज़दूरों की पीड़ा को अपनी लेखनी का आधार बना दिया उन्होंने कभी अंग्रेज़ वायसराय की ड्रेस सेंस पर क़लम नहीं चलाई और नहीं कभी गुणगान के दम पर कोई साधन,कोई सुविधा प्राप्त की,पर अब तो किसी नेता का ड्रेस सेंस अखबारो की सुर्ख़ियाँ बटोरता है या किसी नेता नेता की ग़रीब माँ ग़रीबी की ब्राण्ड ऐम्बैसडर बन कर ख़बरों की सुर्ख़ियाँ बटोरती हैं..,अख़बार क्रांति का ज़रिया होती हैं वे जनता का नज़रिया होती हैं उनकी मौजूदा दशा पर महशर बदायूनी की लिखी शायरी हक़ीक़त बयान करती हैं कि-
अब,हवायें ही
करेंगी रौशनी
का फ़ैसला
जिस दिये
में जाँ होगी
वो दीया
रह जायेगा..,