काव्य कलश: परीक्षा
क्यों पाँच पुरुषों में बाँटा तुमने ,
किसी एक की समर्पिता ,
नहीं बनने दिया मुझे,
मैं भी चाहती थी ,
मातृत्व से परिपूर्ण होना,
चाहती थी कि पुकारे मुझे माँ
चाहती थी कि सुनकर ,
उमड़े वात्सल्य भरे दूध से ,
मेरी भी छातियाँ,
किसी एक की अर्द्धांगिनी बनकर
जीना चाहती थी मैं,
कब चाहा था कि भरी राज सभा में
मुझे यूँ बालों से घसीट ,
निर्वस्त्र कर पाँच पुरुषों की
वेश्या कह मेरा उपहास हो,
दुर्योधन की नंगी जाँघ का आमंत्रण
हाय मैं मर क्यूँ ना गई,
आज पूछती हूँ माता कुंती तुमसे ,
क्यूँ ली “ परीक्षा”
मेरे अस्तित्व की ,
क्या मैं वस्तु थी कोई तुम्हारी नजर मे।।
नीलिमा मिश्रा