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देशव्यापी मंदी के दुष्प्रभावों के खिलाफ वामपंथी पार्टियों के राज्य स्तरीय धरने में शिरकत करेगी किसान सभा

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छत्तीसगढ़ किसान सभा : देशव्यापी मंदी का प्रदेश के किसानों पर पड़ रहे दुष्प्रभाव के खिलाफ अभियान चला रही है. इस अभियान के तहत सरगुजा, सूरजपुर, चांपा, कोरबा में प्रदर्शन आयोजित किये हैं. उसने 16 अक्टूबर को वामपंथी पार्टियों के रायपुर में आयोजित राज्य स्तरीय धरने में भी किसानों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने का फैसला किया है.

आज यहां जारी एक बयान में *छग किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते तथा महासचिव ऋषि गुप्ता* ने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण तबाह अर्थव्यवस्था की सबसे बुरी मार किसानों पर ही पड़ी है. पिछले दो-ढाई सालों में पांच करोड़ लोगों ने रोजगार गंवाया है. इसके कारण लोगों की जेब में खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं और बाज़ार मांग के अभाव से जूझ रहा है.

किसान सभा नेताओं ने कहा कि इस मंदी से निपटने के लिए ऐसे उपाय करने की जरूरत हैं, जिससे आम जनता की क्रयशक्ति बढ़े. इसके लिए मोदी सरकार को मनरेगा में काम खोलना चाहिए, फसलों को सी-2 लागत फार्मूले की डेढ़ गुना कीमत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देकर खरीदना चाहिए, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धों व विधवाओं के लिए पेंशन की व्यवस्था करना चाहिए. इस सरकार को देश के सभी किसानों को उन पर चढ़े बैंकिंग और साहूकारी क़र्ज़ से मुक्त करना चाहिए. लेकिन इन क़दमों को उठाने के बजाये यह सरकार पूंजीपतियों को लाखों करोड़ रुपयों के बेल-आउट पैकेज, करों में छूट और  सस्ते बैंक-ऋण देने में ही मस्त हैं, लेकिन इन कदमों से देश को मंदी से उबारा नहीं जा सकता.

उन्होंने कहा कि अनियमित वर्षा की मार के कारण प्रदेश के आधे किसानों की फसल चौपट हो गई हैं और बाक़ी कम उत्पादन, अधिक लागत की मार से जूझ रहे हैं. उन्होंने कहा कि भूमिहीनों और आदिवासियों सहित प्रदेश के 37 लाख किसान परिवार सरकारी ऋण योजना के दायरे से बाहर होने के कारण साहूकारी क़र्ज़ के जाल में फंसे हुए हैं. राज्य सरकार द्वारा बैंकिंग क़र्ज़ की माफ़ी की घोषणा के बावजूद बैंकों ने उन्हें क़र्ज़ मुक्ति के प्रमाणपत्र नहीं दिए हैं और वे नए ऋण पाने से वंचित हैं. वनभूमि से आदिवासी भगाए जा रहे हैं, खेती की जमीन छीनी जा रही है, लेकिन कॉर्पोरेटों को धड़ल्ले-से जल-जंगल-जमीन और खनिज सौंपे जा रहे हैं.

किसान सभा ने कहा है कि वामपंथी पार्टियों ने किसानों की समस्याओं व उनकी मांगों को पुरजोर तरीके से उठाया है, इसलिए किसान सभा ने भी मंदी के खिलाफ उनके संघर्ष में किसानों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने का फैसला किया है, ताकि रोजगार पैदा करने और मांग बढ़ाने के लिए सार्वजनिक निवेश बढ़ाने के फैसले लेने के लिए मोदी सरकार को बाध्य किया जा सके. किसान सभा ने राज्य की कांग्रेस सरकार से भी  किसानों और आदिवासियों से किये गए चुनावी वादों पर सही तरीके से अमल करने की मांग की है.

 

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