नितिन राजीव सिन्हा
दौर ए दस्तूर है या कि सियासत जाने का दर्द है के शराब अब,रमन सिंह के लिये राजनीति की रोटी सेकने का ज़रिया है और कांग्रेस के सामने चुनौती यही है कि रमन सरकार की व्यावसायिक विरासत वह सम्हाल रही है सिंबा बीयर जो कथित तौर पर छोटे नवाब की भागीदारी का नजराना है
उसकी बेनामी कश्ती के कई सवार हैं और संभव है कि वो अब भूपेश सरकार के सीने में मूँग दर रहे हों..,
ख़ैर,रमन सिंह ने सदन में कहा है कि नशाबंदी गांधी का सपना रहा हो या न रहा हो पर,कांग्रेस का चुनाव से पहले तक यह सपना ज़रूर था..,
रमन के बातों की गंभीरता को समझते हुए हम तो यही लिखेंगे कि नशाबंदी पर बोलते बोलते वो शराब बंदी पर ख़ामोशी की चादर ओढ़ लिये “संकेत साफ़ हैं कि रमन सिंह कांग्रेस के सपनों को जीने में अपने मुफ़लिसी के दिन काट रहे हैं,शराब के शब में उनके ख़्वाब सज रहे हैं..,”
पर,जब बात धंधे की हो,तो..!!!सरकार तब भी शराब बेचती थी अब भी बेच रही है १५ साल में शराब बंदी नहीं किये और अब जनता को प्रवचन सुना रहे हैं जो कि शर्मनाक है..,रमन के दर्द पर ग़ालिब ने सालों पहले लिखा था-
इशरत ए क़तरा
है,दरिया में फ़ना
हो जाना दर्द का
हद से गुज़रना है
दवा हो जाना..,