नितिन राजीव सिन्हा
गांधी चरखे पर बैठते थे सूत कातते थे ख़ुद नंगे बदन रहते थे औरों के लिये कपड़े गढ़ते थे वे विचार थे गांधी गंध थे वे अगरबत्ती की तरह से जलते थे सुगंध बनकर हवा में बहते थे अब भी बह रहे हैं वे मर कर भी मिटे नहीं हैं..,
नरेंद्र मोदी चरखे पर सवार होते हैं मानो शेर के सवार हों सूत कातते हैं सूट पहनते हैं विचार तो वे हैं नहीं पर,विचारों के सौदागर लगते हैं यदि किताबों की दुकान की तरह कोई विचार बेचने की दुकान सज़ा दी जाये तो वहाँ के वो बेहतरीन सेल्समेन ज़रूर बन सकते हैं..,
आज २ अक्टूबर है दुनिया इसे गांधी के जन्म दिवस के तौर पर याद करती है पर,गांधी जो चरखे से आगे नहीं बढ़े वे उसे ही सेवा का साधन समझते थे तब कैमरा सहज उपलब्ध नहीं था इसलिये चरख़ा,गांधी के लिये ग़रीबी की सेवा का साधन था अब स्मार्ट फ़ोन का ज़माना है तो चरख़ा मोदी के लिये तस्वीरें उतरवाने अथवा फ़ोटो सेसन की सुविधा है यही विचारों के द्वंद्व में साधन और सुविधा के बीच का फ़ासला भी है और गांधी तथा मोदी के बीच के वैचारिक धरा पर उत्पन्न हुए फ़र्क़ का फ़लसफ़ा भी है के मोदी,गांधी नहीं बन सकते और गांधी बनिया नही बन सकता..,
बक़ौल अमित शाह,”गांधी चतुर बनिया था..,”
भाजपा नेतृत्व की विचारशून्यता ने गांधी के गंध को गधा मान लिया और मोदी ने एक बार कह दिया कि वे गधे से प्रेरणा लेते हैं यदि ऐसा वे करते हैं तो ठीक करते हैं गांधी चरख़ा देश का विचार बन गया है सदाचार का संदेश बन गया है सादगी की परंपरा बन गया है जिस पर ब्रैंड मोदी का ठप्पा लग जाना दुर्भाग्यपूर्ण है..,
लिखना होगा कि-
चरख़ा तुम
यूँ घूम रहे
हो,वक़्त का
पहिया बन
झूम रहे हो
गांधी चला
गया है
चरख़ा तू
छला गया है
मोदी ने फेरा
है हाथ..,
क्या मुट्ठी
भर सूत
तुझसे
काता गया है..?
कह दे तू
जो गांधी नहीं है
तो,चरख़ा भी
चरख़ा नहीं है
वह मोदी का
पोशाक नहीं है..,