कामरेड अक्सर कहा करते हैं कि भारतीय समाज में तीन किस्म की निरंकुश तानाशाहियाँ बद्धमूल रूप में स्थापित हैं : ज्ञान की तानाशाही, पद की तानाशाही और उम्र की तानाशाही। एक ज्ञानी के आगे लोग अपने विवेक की स्वतन्त्रता खोकर नतमस्तक हो जाते हैं I एक गधे को भी ऊँची कुर्सी पर बैठा दो तो लोग कोर्निश बजाने लगते हैं और एक परम मूर्ख बूढ़ा भी नसीहतें झाड़ना अपना विशेषाधिकार मान लेता है I ये तीन किस्म की निरंकुश तानाशाहियाँ हमारे समाज के ताने-बाने में जनवाद और तर्कणा की न्यूनातिन्यून उपस्थिति को ही दर्शाती हैं । इस स्थिति के विरुद्ध सतत सांस्कृतिक क्रान्ति चलाये बगैर आमूलगामी सामाजिक बदलाव की किसी धारा को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता I
मेरे पहले गुरु मेरे क्रांतिकारी पूर्वज हैं जिनकी शिक्षाएँ पुस्तकों के रूप में हमारे सामने हैं I दूसरे गुरु मेरे कामरेड और मित्र हैं और तीसरे गुरु वे आम लोग हैं जिनसे हम रोज़-रोज़ ज़िंदगी के बुनियादी सबक सीखते हैं ! अपने इन गुरुओं को याद करने के लिए मुझे किसी विशेष दिन की ज़रूरत नहीं ! मैं हरदम उनके निकट संपर्क में रहती हूँ !
कविता कृष्णा