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हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित वृहस्पति, वशिष्ठ, विश्वामित्र, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि के कुकर्मों को देख लीजिये !

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गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तमाम प्रगतिशील लोग भी अपने प्रिय गुरुओं को याद कर रहे हैं ! मैं भी अपने प्रिय गुरुओं को याद करती हूँ पर गुरु पूर्णिमा के दिन तो कत्तई नहीं करूँगी !

गुरु पूर्णिमा की अवधारणा गुरु पूजा और गुरु को देव-तुल्य मानने की हिन्दू धार्मिक सोच से जुड़ी हुई है ! आप हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित वृहस्पति, वशिष्ठ, विश्वामित्र, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि के कुकर्मों को देख लीजिये ! मैं किसी भी गुरु को देवतुल्य या अप्रश्नेय या निर्भूल नहीं मानती !

कामरेड अक्सर कहा करते हैं कि भारतीय समाज में तीन किस्म की निरंकुश तानाशाहियाँ बद्धमूल रूप में स्थापित हैं : ज्ञान की तानाशाही, पद की तानाशाही और उम्र की तानाशाही। एक ज्ञानी के आगे लोग अपने विवेक की स्वतन्त्रता खोकर नतमस्तक हो जाते हैं I एक गधे को भी ऊँची कुर्सी पर बैठा दो तो लोग कोर्निश बजाने लगते हैं और एक परम मूर्ख बूढ़ा भी नसीहतें झाड़ना अपना विशेषाधिकार मान लेता है I ये तीन किस्म की निरंकुश तानाशाहियाँ हमारे समाज के ताने-बाने में जनवाद और तर्कणा की न्यूनातिन्यून उपस्थिति को ही दर्शाती हैं । इस स्थिति के विरुद्ध सतत सांस्कृतिक क्रान्ति चलाये बगैर आमूलगामी सामाजिक बदलाव की किसी धारा को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता I

मेरे पहले गुरु मेरे क्रांतिकारी पूर्वज हैं जिनकी शिक्षाएँ पुस्तकों के रूप में हमारे सामने हैं I दूसरे गुरु मेरे कामरेड और मित्र हैं और तीसरे गुरु वे आम लोग हैं जिनसे हम रोज़-रोज़ ज़िंदगी के बुनियादी सबक सीखते हैं ! अपने इन गुरुओं को याद करने के लिए मुझे किसी विशेष दिन की ज़रूरत नहीं ! मैं हरदम उनके निकट संपर्क में रहती हूँ !

कविता कृष्णा

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