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राष्ट्रीय कोयला और थर्मल पावर सम्मेलन 25 व 26 को नगर में

प्रभावित समुदायों को साझा मंच पर लाने एनवॉयरोनिक्स ट्रस्ट व सार्थक का आयोजन

कोरबा - एनवॉयरोनिक्स ट्रस्ट (दिल्ली) व सार्थक संस्था के द्वारा 25 व 26 सितंबर को छत्तीसगढ़ में छठवें राष्ट्रीय कोयला और थर्मल पावर सम्मेलन का आयोजन प्रशांति वृद्धा आश्रम सर्वमंगला मंदिर परिसर में किया जाना है। राष्ट्रीय सम्मेलनों का प्राथमिक उद्देश्य, कोयला खनन और थर्मल पावर प्लांट प्रभावित समुदायों को एक साझा मंच पर लाना है ताकि वे खनन और टीपीपी के दुष्प्रभावों, उनसे संबंधित नई और संशोधित नीतियों और कानूनों पर आपसी चर्चा व मंथन कर, अपनी एकजुटता व्यक्त करें। 

एनवॉयरोनिक्स ट्रस्ट के आर धर व सार्थक के लक्ष्मी चौहान ने संयुक्त रूप से जानकारी दी कि सितम्बर 2019 में सरकार ने समुदायों और प्राकृतिक संसाधनों पर व्यापक परिणामों को नजरअंदाज करते हुए कोयला खनन में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दे दी है। इसी प्रकार सरकार द्वारा इस वर्ष लागू की गई नई खनन नीति में कोयला क्षेत्र के लिए गंभीर निहितार्थ हैं। इस तरह की सभाएं, प्रभावितों को उनके अनुभवों को परस्पर साझा करने, एक आम रणनीति बनाने और पूरे देश में फैले उनके संघर्षों को बल देने का केंद्र बिंदु होती हैं। समकालीन समय में शासन-प्रणाली की जन-विरोधी और व्यवसाय-समर्थक प्रकृति की बढ़ती प्रवृत्ति ऐसे सम्मेलनों की महत्ता को कई गुना बढ़ा देती है।

लक्ष्मी चौहान ने बताया कि भारत की कोयला नीति विचित्र है क्योंकि यह कोयला उत्खनन और थर्मल पावर उत्पादन को पूरी तरह बंद करने के वैश्विक रुझान के ठीक उल्टी है। भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा योजना, यूएनएफसीसीसी के तहत पेरिस समझौते में भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित राष्ट्रीय योगदान (एनडीसी) के बावजूद, कम से कम 2030 तक, कोयला और थर्मल पावर पर बढ़ती निर्भरता को प्रकट करती है। वैश्विक रुझान, कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन के गंभीर दुष्परिणामों के साथ-साथ, सौर, पवन, ओटेक और अन्य वैकल्पिक हरित ऊर्जा उत्पादन की घटती लागत पर आधारित है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक टिकाऊ ईंधन के रूप में कोयले को त्यागा जा रहा है। एक हालिया अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट (भारत के कोयला क्षेत्र के लिए बढ़ता जोखिम) ने भारत के लिए चार नीतिगत विकल्प सुझाए हैं - कोई नया टीपीपी नहीं, उनके निरस्तीकरण के उद्देश्य से निर्माणाधीन टीपीपी की समीक्षा, वित्तीय व्यवहार्यता और बंद करने की योजना हेतु सबसे पुराने टीपीपी का आर्थिक मूल्यांकन और अधिकांश सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कोयला क्षमता को कम लागत वाले नवीकरणीय संसाधनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना।  चौहान ने कहा है कि इस परिदृश्य में कोयला खनन और टीपीपी पर वर्तमान राष्ट्रीय सभा, वैकल्पिक ऊर्जा विकल्पों की तलाश में लगे नेटवर्क को मजबूत करेगी। एक-दूसरे के अनुभवों को साझा करने और अधिक उत्साह, जोश और एकजुटता के साथ प्रतिरोध के तरीके विकसित करने के लिए, एनवॉयरोनिक्स ट्रस्ट ने इस सभा में भागीदारी के लिए नगर के प्रबुद्धजनों सहित खनन प्रभावितों को आमंत्रित किया है।

 

 

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